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]]>सुबह बाज़ार में 9:00 से लेकर 9:15 तक प्री मार्केट ओपनिंग सेशन होता है, ट्रेडर्स इसी समय ट्रेड करना और इन्वेस्ट करना शुरू कर सकते है, इस समय में इंट्राडे मार्जिन जैसी सुविधाएँ नहीं मिलती। पर खरीदने और बेचने की अनुमति होती है।
9:15 बजे के बाद हर प्रकार की ट्रेडिंग और इन्वेस्टिंग शुरू हो जाती है। जिसमें मार्जिन से लेकर अन्य प्रकार की सभी सुविधांए मिलती है।
3:30 बजे बाज़ार में ट्रेडिंग और इन्वेस्टिंग बंद हो जाती है। ये तो बात हुई बाज़ार के खुलने और बंद होने की, अब बात करते है की शेयर खरीदने का सही समय क्या है।
अब इसमें कोई दो राय नहीं है कि शेयर खरीदने का सही समय आपके प्रॉफिट को काफी हद तक प्रभावित करता है लेकिन उसके साथ एक सही शेयर का चुनाव करना भी काफी ज़रूरी है।
इसके लिए शार्ट टर्म ट्रेड के लिए टेक्निकल एनालिसिस (technical analysis in hindi) और लॉन्ग टर्म के लिए फंडामेंटल एनालिसिस (fundamental analysis in hindi) की पूरी जानकारी होनी चाहिए।
आज के समय में इंट्राडे ट्रेडिंग करना एक आम बात हो गई है, लगभग सभी ट्रेडर्स इंट्राडे ट्रेडिंग करते है।
इंट्राडे ट्रेडिंग (intraday trading meaning in hindi) यानी की आज ही ट्रेड ली और आज ही ट्रेड को क्लोज कर दिया।
इंट्राडे ट्रेडिंग मुख्यतः दिन में दो बार सबसे ज्यादा होती है, ये वो समय होते है जब बाज़ार में सबसे ज्यादा वोलैटिलिटी (अस्थिरता) और मोमेंटम होता है और बाज़ार एक दिशा में जाने लगता है।
ऐसा ज़्यादातर मार्केट के शुरूआती घंटो में होता है। अगर इस समय कोई सोदा बनाया जाए तो अच्छा मुनाफा अर्जित किया जा सकता है।
इसके बाद बाज़ार साइडवेज़ (Range Bound) हो जाते है और अगर इस समय बाज़ार में कोई सोदा बनाया जाए तो बाज़ार एक तरह नहीं जाता और नुकसान होने का चांस बढ़ जाता है।
सुबह के बाद और दोपहर तक बाज़ार आमतौर पर साइडवेज़ ही रहता है, फिर उसके बाद बाज़ार में एकतरफा मूवमेंट आती हुई देखी जाती है, जिसमें की ट्रेडर्स काफी ज्यादा ट्रेड करते है।
ये दो समय अच्छी वोलैटिलिटी देते है जिनका इंट्राडे ट्रेडिंग में काफी अच्छा फायदा उठाया जा सकता है और मुनाफा भी कमाया जा सकता है।
इसके साथ इंट्राडे ट्रेडिंग करने के लिए शेयर में वॉल्यूम यानी की liquidity की जानकारी होना भी ज़रूरी है। दिन के जिस समय पर वॉल्यूम बढ़ रही हो वह भी एक ट्रेडर के लिए शार्ट या लॉन्ग पोजीशन लेने का अवसर लेकर आती है
शेयर खरीदने का सही समय क्या है ये काफी हद तक परिस्थिति पर निर्भर करता है। सबसे अच्छा समय वो माना जाता है जब बाज़ार में गिरावट आती है और अच्छी-अच्छी कंपनियों के शेयर धाराशाही होकर सस्ते दामों में मिल रहे होते है।
अच्छी कंपनियों के शेयर यानी की ब्लू चिप शेयर जो बाज़ार में गिरावट आने पर ज्यादा नहीं गिरते और धीरे धीरे लम्बी समयावधि में अच्छा मुनाफा देते है।
अगर लम्बे समय में अच्छा मुनाफा कमाना चाहते है तो आपको इसे शेयर का पोर्टफोलियो बनाना चाहिए जो धीरे ही सही पर अच्छा रिटर्न देते हों।
ऐसा करने के कई तरीके हैं, जैसे की आप SIP (Systematic investment Plan) की मदद से इन्वेस्ट कर सकते हो।
शेयर खरीदने का सही समय क्या है जानने से पहले कंपनी का सही तरीके से अच्छे से मूल्यांकन करना चाहिए और ऐसा करने के लिए आपको उसके फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स को देखना चाहिए।
फाइनेंसियल स्टेटमेंट से कंपनी के हालात के बारे में जानकारी मिल जाती है। और इसके साथ-साथ आपको कंपनी के व्यवसाय के बारे में सटीक जानकारी मिल जाती है।
इस काम को फंडामेंटल रिसर्च करना या फंडामेंटल अनालिसिस करना कहते है। इसमें मुख्यतः तीन चीजें होती है।
शेयर खरीदने का सही समय क्या है यह इस बात पर भी निर्भर करता है की बाज़ार में हम कम्पनी को किस तरह देख रहे है।
इसको एक उदाहरण से समझते है, मान लेते है की Infosys जो एक जानी मानी कंपनी है और पिछले कुछ सालो में अपने निवेशकों को ज़्यादा रिटर्न कमाने का अवसर दिया है लेकिन क्या आज के समय में उसमे निवेश करके आप ज़्यादा रिटर्न कमा सकते है।
मान की कंपनी ग्रो कर सकती है लेकिन महंगे दामों में शेयर खरीदना भी आपके रिटर्न को कम कर सकता है।
तो क्या Infosys का शेयर अब कभी नहीं खरीद सकते?
ऐसा नहीं है।
अच्छी से अच्छी और बड़ी से बड़ी कंपनी के शेयर को तब खरीदना चाहिए जब वह सस्ते हो रखे हो। अब SALE को ही ले लो, आपके पसंदीदा ब्रांड में जब SALE लगती है तो आप discounted price पर खरीदारी करते हो, पैसा वह भी खर्च होता है लेकिन कम पैसो में बढ़िया चीज़ खरीदने का अवसर मिलता है।
बस शेयर मार्केट में निवेश करने का भी सही समय वह ही है।
मार्केट में जब कोई भी कंपनी का शेयर प्राइस अपने All Time High या resistance के पास होता है तो वह से मार्केट में correction या retracement की स्थिति बनती है।
आपको अगर कंपनी के fundamental और growth की पूरी जानकारी है तो यही गिरावट आपके निवेश का सही समय बनती है।
एक तरह से बढ़िया रिटर्न वाला शेयर कम से कम दामों में खरीदने का मौका मिलता है जिससे आप अपनी इन्वेस्टमेंट पर ज़्यादा रिटर्न की उम्मीद कर सकते है। तो यह कहना गलत नहीं होगा की स्मार्ट निवेशक स्मार्ट उपायों का प्रयोग करके (Smart solutions for smart investors in Hindi) अपना फायदा कर सकते है
इसके साथ निवेश का सही समय नीचे दिए कुछ कारकों पर निर्भर करता है:
शेयर खरीदने से पहले कम्पनी के बारे में जानकारी।
अच्छी कम्पनी का आईपीओ आने पर: कोई भी कपनी IPO की मदद से शेयर बाज़ार में कदम रख सकती है, IPO आने पर ये पता लगा लिया जाए की कम्पनी अगर अच्छी है और आगे इसके शेयर के दाम बढ़ेंगे।
निष्कर्ष
बाज़ार में शेयर खरीदने का सही समय क्या है के साथ साथ उस शेयर के सही प्राइस का पता होना बहुत जरूरी होता है। शेयर खरीदने से पहले कम्पनी के हालात के बारे में जान लेना बहुत आवश्यक होता है, ये बिलकुल वैसा ही है की अगर हम किसी अनजान व्यक्ति को पैसे देने से पहले उसके बारे में पूरी तरह से जानकारी इकठ्ठा करते है, फिर उसे पैसे देते है।
इसके अलावा टेक्नीकल अनालिसिस भी एक तरीका है ट्रेडिंग करने का जो बाज़ार में अच्छा मुनाफा निकालने में ट्रेडर की मदद कर सकता है।
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]]>अगर शेयर (share meaning in hindi) की बात की जाए तो एक शेयर कंपनी की इक्विटी ओनरशिप की जानकारी देता है। अब हर कंपनी अपना कुछ भाग यानी की शेयर निवेशकों के लिए इशू करती है तो सरल भाषा में समझा जाए तो आउटस्टैंडिंग शेयर्स उन शेयर को दर्शाता है जिसमे कोई निवेशक निवेश कर इक्विटी प्राप्त कर सकता है।
आउटस्टैंडिंग शेयर कंपनी के मीट्रिक को समझने के लिए बहुत ही उपयोगी पैरामीटर होता है। इसकी संख्या स्टॉक की तरलता और वोलैटिलिटी पर असर डालती है।
चलिए जानते है की आउटस्टैंडिंग शेयर क्या है और किस तरह इसकी गणना की जाती है।
कंपनी के वह शेयर्स जो विभिन्न शेयरधारको द्वारा रखे गए है उसे आउटस्टैंडिंग शेयर कहते है। इसमें संस्तागत निवेशक और कमपनी के इनसाइडर निवेशक भी शामिल होते है।
इसकी जानकारी कंपनी की बैलेंस शीट में Capital stock के अंतर्गत प्राप्त हो जाती है। इसकी मदद से एक निवेशक कंपनी की मार्केट कैपिटलाइजेशन, EPS और Cash flow per share की गणना कर सकता है।
अब बात करते है आउटस्टैंडिंग शेयर के प्रकार की। आउटस्टैंडिंग शेयर दो प्रकार के होते है:
शेयर बाजार में किसी भी कंपनी के शेयर्स जो ट्रेड करने के लिए उपलब्ध है उन्हें बेसिक शेयर कहा जाता है। यह निवेशकों को अधिकृत और जारी किए गए शेयरों की संख्या है, जिसमें संस्थान और निजी व्यक्ति दोनों शामिल हैं।
आउटस्टैंडिंग बेसिक शेयर की सोर्सिंग करते समय, कंपनी की सबसे हालिया फाइलिंग के साथ शुरुआत करना अनिवार्य होता है।
सभी कनवर्टिबल बांड्स और कर्मचारी स्टॉक ऑप्शन के बाद बचे हुए सभी आउटस्टैंडिंग और फ्रीली ट्रेड कॉमन शेयर डायलयुटिड शेयर के अंतर्गत आते है।
क्योंकि डायलयुटिड शेयर किसी भी कंपनी के शेयर की संख्या को बढ़ाकर प्रति शेयर की कमाई कम कर देता है इसलिय किसी भी कंपनी के EPS की गणना करने के लिए उपयोगी होते है।
Outstanding Shares की गणना के लिए कुछ ज़रूरी तथ्य निम्नलिखित है:
ये सभी शेयर की जानकारी आपको कंपनी की बैलेंस शीट (balance sheet in hindi) में आसानी से मिल जायेगी।
निम्नलिखित फॉर्मूले का उपयोग कर आप किसी भी कंपनी के Outstanding shares की गणना कर सकते है:
कंपनी की कुछ घोषणाएं आउटस्टैंडिंग शेयर के नंबर को प्रभावित करती है, जिसका उल्लेख आगे दिया गया है:
जब कोई कंपनी अपने शेयर वापस खरीदती है, तो यह निवेशकों को प्रति शेयर उच्च आय (ईपीएस) का अधिकार देती है। निवेशक आम तौर पर शेयर बायबैक को सकारात्मक रूप से देखते हैं।
साथ में यह निवेशकों को यह भी संकेत दे सकता है कि कंपनी का मानना है कि वर्तमान में इसके शेयरों का अवमूल्यन किया जा रहा है।
कभी-कभी, बकाया शेयरों की संख्या बढ़ाने और स्टॉक की कीमत कम करने के लिए कंपनियां अपने स्टॉक को विभाजित करती हैं। यह तब हो सकता है जब किसी कंपनी के शेयर महंगे हो गए हों और वे सीमित पूंजी वाले रिटेल निवेशकों को आकर्षित करना चाहती हो।
स्टॉक स्प्लिट से कंपनी के शेयर निवेशकों को किफायती दामों में उपलब्ध हो जाते है।
यहाँ पर 2:1 स्टॉक स्प्लिट बकाया शेयरों को दोगुना कर देता है और स्टॉक की कीमत को आधा कर देता है। इसी तरह, 3:1 विभाजन बकाया शेयरों की संख्या को तीन गुना कर देता है और स्टॉक की कीमत को दो-तिहाई कम कर देता है।
प्रत्येक स्थिति में, कंपनी का कुल शेयर की वैल्यू अपरिवर्तित रहती है।
वैकल्पिक रूप से, एक कंपनी बकाया शेयरों की संख्या को कम करने और स्टॉक की कीमत बढ़ाने के लिए रिवर्स स्प्लिट का संचालन कर सकती है।
कुछ स्टॉक एक्सचेंजों की आवश्यकता होती है कि सूचीबद्ध रहने के लिए सभी स्टॉक एक निश्चित मूल्य से ऊपर ट्रेड करे और ऐसे स्थिति में अगर किसी कंपनी जिसका स्टॉक मूल्य किसी एक्सचेंज की सीमा से नीचे गिर गया है, अपने स्टॉक की कीमत बढ़ाने और सूचीबद्ध रहने के लिए रिवर्स स्प्लिट करती है।
रिवर्स स्प्लिट्स स्प्लिट शेयर के समान कार्य करते हैं लेकिन इनका प्रभाव और फंक्शन अलग होता है। एक कंपनी बकाया शेयरों की संख्या कम कर देती है, जिसके परिणामस्वरूप शेयर की कीमत में वृद्धि होती है।
स्टॉक स्प्लिट के जैसे ही इसमें भी कंपनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन (market capitalization meaning in hindi) सामान रहता है।
आउटस्टैंडिंग शेयर कंपनी का EPS की जानकारी प्रदान करता है, इसी प्रकार शेयर मार्केट में इसका काफी महत्व है, जैसे:
1. एक निवेशक या शेयरहोल्डर किसी कंपनी के कितने शेयर होल्ड करता है उससे उसका उस कंपनी में हिस्सेदारी का पता चलता है, जिसके अनुसार उसको वोटिंग का अधिकार और इक्विटी (equity meaning in hindi) की जानकारी मिलती है।
2. अगर कोई कंपनी अपने ख़ज़ाने (treasury shares) में से शेयर इशू करती है तो उससे आउटस्टैंडिंग शेयर का नंबर बढ़ जाता है और शेयरहोल्डर की इक्विटी कम हो जाती है। इसके विपरीत अगर किसी कंपनी के आउटस्टैंडिंग शेयर कम कर दिए जाते है तो उससे मौजूदा शेयरहोल्डर की इक्विटी बढ़ जाती है।
3. आउटस्टैंडिंग शेयरों की संख्या कई प्रति शेयर मेट्रिक्स और अनुपात को प्रभावित करती है, जिसमें प्रति Dividend Per Share (DPS), Earning Per Share (EPS) और Cash Flow Per Share (CFPS) शामिल हैं। DPS आउटस्टैंडिंग शेयरों की संख्या के आधार पर होता है। आउटस्टैंडिंग शेयरों की संख्या बढ़ने पर डीपीएस घट जाता है। ईपीएस और सीएफपीएस पर प्रभाव तुलनीय है।
4. कंपनियाँ नए शेयर जारी कर सकती हैं और मौजूदा शेयरों की पुनर्खरीद कर सकती हैं, जिससे उनके शेयरधारकों के शेयरों का मूल्य प्रभावित होता है। निवेश रिटर्न पर इन परिवर्तनों के प्रभाव को निर्धारित करने के लिए निवेशकों के लिए निवेश अवधि के दौरान आउटस्टैंडिंग शेयर गणना करते रहना चाहिए।
Outstanding Shares meaning in hindi से ये स्पष्ट है कि ये किसी भी कंपनी के कुल ट्रेड होने वाले शेयर की जानकारी प्रदान करता है जिससे एक शेयरहोल्डर कंपनी के वित्तीय और निवेश से होने वाले रिटर्न की गणना आसानी से कर सकता है।
इससे जुड़े फार्मूला के सभी पैरामीटर बैलेंस शीट में दिए जाते है जिससे इसकी वैल्यू की गणना आसानी से की जा सकती है।
अगर आपने अभी तक स्टॉक मार्केट में निवेश नहीं किया है तो अभी शुरुआत करे और नीचे दिए गए फार्म में अपना विवरण भरे।
हम आपको एक सही स्टॉकब्रोकर चुनने में और डीमैट खाता निःशुल्क खोलने में मदद करेंगे।
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]]>स्टॉक मार्केट में शेयर कितने प्रकार के होते है जानने से पहले समझते है कि इक्विटी शेयर क्या होता है।
इक्विटी शेयर एक लॉन्ग-टर्म निवेश का विकल्प है जो कम्पनीज पूँजी एकत्रित करने के लिए स्टॉक मार्केट में इशू करती है। इक्विटी शेयर इशू होने से कंपनी के स्वामित्व कम होता है और निवेशकों को कंपनी में निवेश कर आंशिक स्वामित्व प्राप्त करने का का अवसर मिलता है, जिसके साथ वह भी कंपनी के शेयरहोल्डर की सूची में शामिल हो जाते है।
इक्विटी शेयर में निवेश करने से शेयरहोल्डर को पूँजी के मूल्य वृद्धि और डिविडेंड से हाई रिटर्न कमाने का मौका मिलता है, इसके साथ निवेशकों को मौद्रिक लाभ (monetary benefits) जैसे की वोटिंग राइट भी प्राप्त होते है।
इक्विटी शेयर के प्रकार (types of equity shares in hindi) की बात की जाए तो वह 4 प्रकार के होते है:
आइये इन सबकी विशेषताएं और लाभ को जाने।
साधारण शेयर, जिसे सामान्य शेयर भी कहा जाता है, एक कंपनी के शेयरों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो शेयरधारकों को कंपनी की बैठक में वोट देने का अधिकार देता है और कंपनी के मुनाफे से लाभांश के रूप में आय भी देता है।
एक निवेशक के स्वामित्व वाले साधारण शेयरों की संख्या कंपनी में उसके स्वामित्व के प्रतिशत के अनुपात में होती है।
उदाहरण के लिए, यदि कोई कंपनी शेयर बाजार में अपने सभी 50 शेयर जारी करती है और आप उनमें से 30 के मालिक हैं। आपके पास कंपनी का 60% स्वामित्व होगा।
साधारण शेयर कई प्रकार के लाभों के साथ आते हैं। आपको न केवल शेयरधारकों से संबंधित विभिन्न मामलों पर कंपनी की बैठकों में वोट देने का अधिकार है, बल्कि आप कंपनी के प्रदर्शन के आधार पर लाभांश यानी की डिविडेंड से पैसिव इनकम भी कमा सकते है।
साथ ही, सामान्य शेयरों में परिपक्वता तिथि नहीं होती है। इसका अर्थ है कि कंपनी में आपका स्वामित्व तब तक अप्रभावित रहता है जब तक कि कंपनी स्वयं को असूचीबद्ध करने का निर्णय नहीं लेती है या जब कोई अन्य कंपनी अधिग्रहण नहीं करती है।
प्रीफरेंस शेयर्स एक विशेष शेयर विकल्प है जो शेयरधारकों को इक्विटी शेयरधारकों से पहले कंपनी द्वारा घोषित लाभांश प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।
प्रीफेरेद शेयर शेयरधारकों को कंपनी के जीवनकाल के दौरान लाभांश (dividend) का दावा करने का विशेष अधिकार प्रदान करते हैं, और कंपनी के बंद होने की स्थिति में पूंजी के पुनर्भुगतान का दावा करने का विकल्प भी प्रदान करते हैं।
इसे हाइब्रिड शेयर विकल्प माना जाता है क्योंकि यह डेब्ट और इक्विटी निवेश दोनों की विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करता है। प्रीफेरेद शेयर जारी करके जुटाई गई पूंजी को प्रीफेरेद शेयर पूंजी के रूप में जाना जाता है और प्रीफरेंस शेयरधारकों को कंपनी का मालिक माना जा सकता है।
हालांकि, इक्विटी शेयरधारकों के विपरीत, उन्हें किसी भी प्रकार के वोटिंग अधिकार प्राप्त नहीं हैं।
इक्विटी शेयर और प्रीफरेंस शेयर में काफी अंतर है जिसका उल्लेख difference between equity shares and preference shares in hindi में किया गया है।
राइट शेयर्स उन शेयरों के इश्यू को संदर्भित करता है जो एक कंपनी अपने मौजूदा शेयरधारको को कम मूल्य में ऑफर करती है। कंपनी के शेयरधारक प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार रखते है।
अगर शेयरधारक इनमे निवेश करते है तो उन्हें एक न्यूनतम मात्रा में इस इशू के लिए आवेदन करना होता है।
कंपनी प्रत्येक शेयरधारक को अधिकार जारी करने के संबंध में सूचित करती है जिसमे शेयरधारकों को निर्धारित समय के भीतर नोटिस का जवाब देना होता है हालाँकि, उनके पास या तो पूरी तरह से या आंशिक रूप से राइट शेयर में सब्सक्राइब या आवहेलना करने का विकल्प होता है।
बोनस शेयर कंपनी द्वारा मौजूदा शेयरधारकों को मुफ्त में दिए जाने वाले अतिरिक्त शेयर होते हैं। तरलता आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शेयरधारक इन शेयरों को स्टॉक मार्केट में खरीद और बेच सकते हैं।
ऐसी कुछ स्थितियाँ होती हैं जब एक लाभदायक टर्नओवर होने के बावजूद, लिक्विड फंड की संभावित कमी के कारण कंपनी नकद में लाभांश का भुगतान करने में असमर्थ होती है। ऐसे मामलों में, कंपनी नकद में लाभांश का भुगतान करने के बजाय मौजूदा शेयरधारकों को बोनस शेयर जारी करती है।
कई बार लिक्विड फण्ड की कमी न होने पर भी कंपनियां बोनस शेयर जारी करती हैं जिससे वह डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स से बच सके।
क्योंकि बोनस शेयर कंपनी की पूँजी को शेयर कैपिटल में परिवर्तन किया जाता है इसलिए बोनस शेयर इशू करने पर मुनाफे का ‘पूंजीकरण’ होता है।
बोनस शेयर जारी करने के लिए कंपनी शेयरधारकों से शुल्क नहीं ले सकती है और इसलिए जो राशि बोनस इश्यू के मूल्य के बराबर होती है उसे लाभ या रिजर्व के विरुद्ध समायोजित किया जाता है, और फिर इक्विटी शेयर कैपिटल अकाउंट में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
Types of Equity shares में चार तरह के शेयर्स की जानकारी दी गयी है जो आपको मार्केट में मौजूदा होल्डिंग या नए निवेश से होने वाले फायदों की जानकारी प्रदान करता है।
इन सभी शेयर्स की विशेषताएं और लाभ की जानकारी ले आप स्टॉक मार्केट में निवेश कर सकते है।
अगर आपने अभी तक स्टॉक मार्केट में निवेश नहीं किया है तो अभी शुरुआत करे और नीचे दिए गए फार्म में अपना विवरण भरे।
हम आपको एक सही स्टॉकब्रोकर चुनने में और डीमैट खाता निःशुल्क खोलने में मदद करेंगे।
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]]>The post Equity Shares vs Preference Shares in Hindi appeared first on अ डिजिटल ब्लॉगर.
]]>इक्विटी का अर्थ होता है ओनरशिप और कोई भी कंपनी अपने इक्विटी शेयर्स स्टॉक मार्केट में पूँजी जुटाने के लिए इशू करती है। इससे कंपनी के प्रमोटर्स स्वामित्व को कम करते है और इन्वेस्टर के फण्ड से कंपनी के बिज़नेस को बढ़ाते है।
जो निवेशक कंपनी के शेयर खरीद उसमे निवेश करते है वह शेयरहोल्डर कहलाते है और अलग-अलग तरह से मुनाफा कमाते है, जैसे की:
इसके साथ इक्विटी शेयरहोल्डर को कंपनी की बोर्ड मीटिंग में वोटिंग का अधिकार भी प्रदान किया जाता है।
इक्विटी शेयर अलग-अलग प्रकार के होते है (types of equity shares in hindi) जिन्हे मार्केट कैप और वैल्यूएशन के आधार पर बांटा गया है जैसे की लार्ज कैप, मिड कैप, स्माल कैप, और ग्रोथ एवं वैल्यू शेयर्स।
अब बात करते है प्रीफरेंस शेयर की। कंपनी के एसेट और आय पर प्रीफेरेद शेयरहोल्डर वरियता प्राप्त करते है। इसके साथ अगर कंपनी दिवालिया घोषित होती है तो उसमे प्रीफेरेद शेयरहोल्डर को कंपनी के एसेट प्रटप करने की वरियता प्राप्त होती है।
कंपनी प्रीफरेंस शेयर्स कंपनी की ग्रोथ के लिए पूँजी एकत्रित करने के लिए करते है लेकिन यहाँ पर कंपनी डिविडेंड देने में भी इन शेयरहोल्डर को प्रीफरेंस देती है।
हालांकि प्रीफरेंस शेयरधारक को कंपनी में वोटिंग का अधिकार प्रदान नहीं किया जाता।
आइये अलग-अलग पहलूओं और अधिकारों के आधार पर इक्विटी और प्रीफरेंस शेयर्स के बीच के अंतर को जाने:
इक्विटी शेयर्स बनाम प्रीफरेंस शेयर्स | ||
मीनिंग | शेयर्स जो कंपनी का मालिकाना वैल्यू का प्रदर्शन कर कंपनी की वित्तीय स्थिति का प्रदर्शन करते है। | शेयर्स जो शेयरधारको को कंपनी के मुनाफे में अधिमान्य अधिकार प्रदान करते है। |
रिटर्न | पूँजी में मूल्य वृद्धि। | नियमित डिविडेंड आय। |
डिविडेंड पे आउट | इक्विटी शेयरधारको को परेफरेंस शेयरहोल्डर के बाद डिविडेंड की प्राप्ति होती है। | प्रीफरेंस शेयरहोल्डर को डिविडेंड देने में प्राथमिकता दी जाती है। |
डिविडेंड रेट | सामान्य के प्रॉफिट पर निर्भर करता है। | निर्धारित रेट पर डिविडेंड की प्राप्ति होती है। |
बोनस शेयर्स | इक्विटी शेयरधारक अपने मौजूदा होल्डिंग्स के खिलाफ बोनस शेयर प्राप्त करने के पात्र होते हैं। | प्रीफरेंस शेयरहोल्डर को बोनस शेयर की प्राप्ति नहीं होती है। |
वोटिंग का अधिकार | इक्विटी शेयरधारको को बोर्ड मीटिंग में अपना वोट देने का अधिकार होता है। | प्रीफरेंस शेयरधारको को वोटिंग का अधिकार नहीं मिलता है। |
रिडेम्पशन | इक्विटी शेयर्स को रिडीम नहीं किया जा सकता। | परेफरेंस शेयर्स को रिडीम किया जा सकता है। |
प्रकार | आर्डिनरी शेयर, बोनस शेयर, राइट्स शेयर्स, स्वेट इक्विटी | कनवर्टिबल, नॉन-कनवर्टिबल, रेडीमाबल, नॉन-रेडीमाबल, क्युमुलेटिव, नॉन-क्युमुलेटिव, आदि |
लिक्विडिटी | अधिक लिक्विड जो शेयर बाजार में ट्रेड किये जाते है। | लिक्विड नहीं होते, लेकिन कंपनी शेयर वापस खरीद सकती है। |
Equity shares vs preference shares आपको दो अलग-अलग प्रकार के शेयर्स के बीच का अंतर और लाभ बताते है।
इन दोनों प्रकार और अंतर की जानकारी के आधार पर आप इन शेयर्स में निवेश कर अपने रिटर्न और इनकम को बढ़ा सकते है।
इसके साथ अगर आप शेयर मार्केट में निवेश करने के सफर की शुरुआत करना चाहते है तो उसके लिए अभी नीचे दिए गए फॉर्म में अपना विवरण भरे और हमारी टीम आपको एक सही स्टॉक ब्रोकर और उसके साथ डीमैट खाता खोलने में मदद करेगी।
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]]>इक्विटी के बात की जाए तो ये किसी भी कंपनी के मालिकाना हक़ की जानकारी देती है वही दूसरी तरफ शेयरहोल्डर्स इक्विटी कंपनी की नेटवर्थ की जानकारी देती है।
आसान भाषा में शेयरहोल्डर्स इक्विटी कंपनी की उस सम्पति को दर्शाती है जो परिसमाप्त (liquidate) होने पर और सभी क़र्ज़ अदा करने के बाद कंपनी अपने शेयरधारको को वापिस करती है।
इस वैल्यू की जानकारी आप कंपनी की बैलेंस शीट से प्राप्त कर सकते है जिससे आप कंपनी की वित्तीय स्थिति की जानकारी प्राप्त कर उसमे निवेश करने की योजना बना सकते है।
तो चलिए जानते है की शेयरहोल्डर्स इक्विटी के लिए शेयर मार्केट का गणित।
शेयरहोल्डर्स इक्विटी की जानकारी कंपनी के करंट एसेट्स और लायबिलिटी से प्राप्त की जाती है। ये जानकारी आप कंपनी की बैलेंस शीट (balance sheet in hindi) से आसानी से प्राप्त कर सकते है।
इसके अलावा आप कंपनी के शेयर कैपिटल और रेटेन एअर्निंग में से ट्रेज़री शेयर्स (treasury shares) को घटा कर भी कर सकते है।
अब इक्विटी की गणना करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:
1. कंपनी के कुल एसेट की गणना करें
एसेट के मतलब (assets meaning in hindi) को जाने तो ये कंपनी की फ्यूचर ग्रोथ और वित्तीय की जानकारी प्रदान करता है। कंपनी द्वारा प्रदर्शित वैल्यू उसके केश फ्लो, कम खर्चे, बेहतर सेल मार्जिन की जानकारी प्रदान करता है।
एसेट को आगे तीन भागो में बांटा गया है:
2. कंपनी की कुल लिएबिलिटीज़ की गणना करें
कुल लिएबिलिटीज़ में कंपनी द्वारा लिए गए क़र्ज़ और दायित्व शामिल होते है। इसकी जानकारी भी आप कंपनी के बैलेंस शीट से प्राप्त कर सकते है।
बैलेंस शीट में दी गयी अलग-अलग लिएबिलिटीज़ के प्रकार निम्नलिखित है:
कंपनी के कुल एसेट और लिएबिलिटीज़ की जानकारी के बाद आप शेयरहोल्डर्स इक्विटी की जानकारी प्राप्त कर सकते है। इस वैल्यू से आप कंपनी में निवेश करने के रिस्क और रिटर्न की जानकारी के साथ उसके वर्तमान वित्तीय की जानकारी भी प्राप्त कर सकते है।
शेयरहोल्डर्स इक्विटी की गणना का फार्मूला निम्नलिखित है:
शेयरहोल्डर्स इक्विटी= करंट एसेट – करंट लिएबिलिटीज़
अब शेयरहोल्डर इक्विटी की गणना को समझने के लिए एक उदाहरण लेते है:
मान लेते है की एक कंपनी जिसके नॉन-करंट एसेट की वैल्यू 310,617 करोड़, और करंट एसेट 97,037 करोड़ के है। यहाँ पर कुल एसेट की वैल्यू:
कुल एसेट= 310,617+97,037
=407,654 करोड़
इसी प्रकार टोटल लायबिलिटीज के लिए नॉन-करंट और करंट लायबिलिटीज 60,717 करोड़ और 101,058 करोड़ है, जिससे
कुल लायबिलिटीज= 161,775 करोड़
इन दोनों वैल्यू के आधार पर शेयरहोल्डर्स इक्विटी की वैल्यू:
= (407,654-161,775) करोड़
= 245,879 करोड़
शेयरहोल्डर्स इक्विटी की जानकारी एक निवेशक को कंपनी के वित्तीय की जानकारी प्रदान करता है जिससे वह कंपनी में निवेश करने की योजना बना सके।
कंपनी के मौजूदा फण्ड और उसके उपयोग की जानकारी प्राप्त कर आप कंपनी के भविष्य ग्रोथ और मुनाफे को माप सकते है। अगर इक्विटी की वैल्यू पॉजिटिव आती है तो वह कंपनी के स्टेबल और मजबूत मौलिक की जानकारी देता है। वही नेगेटिव इक्विटी कंपनी की बढ़ती हुई लायबिलिटी और उसकी लिक्विडेट होने की स्थिति को दर्शाता है।
इसके साथ अगर आप शेयर मार्केट में निवेश करने के सफर की शुरुआत करना चाहते है तो उसके लिए अभी नीचे दिए गए फॉर्म में अपना विवरण भरे और हमारी टीम आपको एक सही स्टॉक ब्रोकर और उसके साथ डीमैट खाता खोलने में मदद करेगी।
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]]>The post Share Market Income Tax in Hindi appeared first on अ डिजिटल ब्लॉगर.
]]>भारत में आप विभिन ट्रेडिंग सेगमेंट में ट्रेड कर सकते है जिससे आप कई तरह के लाभ कमा सकते है अब वही पर लाभ होने पर टैक्स भी अलग-अलग तरह से ही निर्धारित होता है। जहाँ अधिकांश निवेशों में सरल टैक्सेशन नियम होते हैं, इंट्राडे ट्रेडिंग पर टैक्स में विभिन्न पहलू शामिल होते हैं।
आज हम आपको लॉन्ग टर्म निवेश करने पर निवेशकों पर किस तरह से टैक्स लगाया जाता है इंट्राडे ट्रेडिंग (intraday trading in hindi) और फ्यूचर, ऑप्शन पर कमाए हुए लाभ को किस किस तरह से कैलकुलेट किया जाता है उस पर विस्तृत जानकारी देंगे।
शुरू करते है निवेशकों की लिए टैक्सेशन कैसे काम करता है कि जानकारी के साथ।
निवेशिक इनकम में कमाए हुए लाभ को कैपिटल गेन कहा जाता है अब इसके अंतर्गत आपके होल्डिंग अवधि के अनुसार दो तरह के गेन्स होते है:
स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड इक्विटी शेयर (equity shares meaning in hindi) पर निवेश कर अगर आप उसे 12 महीने यानी की 1 वर्ष के बाद बेचते है तो उस पर कमाए हुए प्रॉफिट को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) कहा जाता है।
अब यहाँ पर अगर सिक्योरिटीज बेचने पर आपको 1 लाख या उससे कम का लाभ होता है तो उस पर आपको किसी भी प्रकार का टैक्स नहीं देना होता वही दूसरी तरफ 1 लाख से ऊपर के लाभ पर 10% के अनुसार टैक्स प्राप्त किया जाता है।
इस कांसेप्ट को एक उदहारण से समझने की कोशिश करते है। मान लेते है की रवि नाम का एक ट्रेडर है जिसने पिछले कुछ सालो में निवेश कर प्रकार का प्रॉफिट कमाया:
2019 में ABC स्टॉक बाय वैल्यू : ₹1,00,000
2022 में ABC स्टॉक सेल वैल्यू : ₹3,00,000
लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन: ₹2,00,000/-
अब जैसे की बताया गया है कि लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन में 1,00,000 रुपये तक कोई टैक्स नहीं लगता है तो यहाँ पर बचे हुए 1,00,000 पर आपको 10% के हिसाब से 10,000 टैक्स देना होगा।
अब इक्विटी शेयर अगर खरीदने के बाद 12 महीने के अंतर्गत बेच दी जाती है तो उस पर कमाए हुए प्रॉफिट को शार्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG) के अंतर्गत रखा जाता है।
शार्ट टर्म कैपिटल गेन यानी की आपने जिस प्राइस पर स्टॉक को ख़रीदा था उससे ज़्यादा दामों में 12 माह के अंतर्गत बेच दिया। इस प्रॉफिट पर आप पर 15% टैक्स चार्ज किया जाता है।
ये तो बात हुई गेन की अब बात करते है क्या लॉस होने पर भी आपको टैक्स देना होता है? जिस तरह से प्रॉफिट को दो केटेगरी में रखा गया है ठीक उसी प्रकार लॉस को भी अवधि के अनुसार दो केटेगरी में बांटा गया है।
अब मान लेते है की रवि ने 2021 में एक ट्रेड किया और 6 महीने में उस पर 1,00,000 रुपये का प्रॉफिट कमा कर बेच दिया। इस पर टैक्स लॉ के हिसाब से आपको 15% तक का टैक्स देना होगा, यानी की रवि ने जो 1,00,000 का टैक्स कमाया है उस पर उसको 15,000 का टैक्स भरना होगा।
नाम से ही जैसे आप जान ही गए होंगे की अगर आप किसी भी इक्विटी शेयर को 1 साल से ज़्यादा के लिए होल्ड करते है और उसे बेचने पर आपको नुकसान होता है उसे लॉन्ग टर्म कैपिटल लॉस कहा जाता है। अब प्रॉफिट पर तो टैक्स किस तरह से लगता है वह बता दिया गया है, लेकिन लोस्स होने पर क्या होता है।
यहाँ पर अगर आपको किसी इक्विटी शेयर को 1 साल के बाद बेचने पर नुकसान होता है तो वह आपके लॉन्ग टर्म कैपिटल प्रॉफिट के साथ ओफ़्सेट कर दिया जाता है, लेकिन अगर अगले साल भी आपका कोई मुनाफा नहीं है या किसी कारणवश ये ऑप्शन उपलब्ध नहीं है तो आप अगले 8 साल तक अपने नुकसान को केरी फॉरवर्ड कर सकते है।
यहाँ पर इस बात का ध्यान रखना काफी ज़रूरी है कि आप इस लाभ का फायदा सिर्फ ITR भरने पर उठा पाएंगे।
शार्ट टर्म यानी की एक साल के अंदर कोई भी इक्विटी शेयर को खरीद उसे बेचने पर आपको अगर नुकसान होता है तो उसे शार्ट टर्म कैपिटल लॉस कहा जाता है। अब अगर आपको शार्ट टर्म ट्रेड में नुकसान होता है तो वह आपके शार्ट टर्म कैपिटल गेन या लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन के साथ ओफ़्सेट कर दिया जाता है।
अगर पूरा नुकसान ओफ़्सेट नहीं होता है तो आप अपने लॉस को अगले 8 साल तक के लिए केरी फॉरवर्ड कर उसे अपने लॉन्ग और शार्ट टर्म गेन के साथ एडजस्ट कर सकते है।
इंट्राडे ट्रेडिंग को स्पेक्युलेटिवे बिज़नेस इनकम के अंतर्गत रखा जाता है, यानी की इसकी गणना आपके बिज़नेस इनकम की तरह की जाती है। अब इसे समझने के लिए एक उदाहरण लेते है:
जिस तरह से निवेश से कमाए हुए लाभ को दो केटेगरी में बांटा गया है, ठीक उसी प्रकार ट्रेडर की इनकम भी दो भागो में बांटी गयी है:
अब जब भी आप स्टॉक मार्केट में इंट्राडे ट्रेड करते है तो आपका मकसद सिर्फ प्रॉफिट कामना होता है और इसलिए उससे कमाए हुए प्रॉफिट को स्पेक्युलेटिवे बिज़नेस इनकम कहा जाता है।
फ्यूचर और ऑप्शन जो हेजिंग के उद्देश्य से की जाती है उसमे होने वाली सभी ट्रेड (इंट्राडे और ओवरनाइट) से कमाए हुए प्रॉफिट नॉन-स्पेक्युलेटिवे बिज़नेस इनकम के अंतर्गत आती है
उदहारण 1
यहाँ एक 30 बर्षीय इंट्राडे ट्रेडर का आय विवरण दिया गया है :
इन आय को देखते हुए, कुल टैक्स लायबिलिटी की गणना निम्नलिखित रूप से की जाएगी :
कैपिटल गेन पर उस अवधि के आधार पर कर लगाया जाएगा जिसके लिए वह स्टॉक ख़रीदे गए है। मान लीजिए कि पूंजीगत लाभ अल्पकालिक थे इसलिए आय पर 15% टैक्स लगाया जाएगा और टैक्स लायबिलिटी 15000 रुपये होगी।
कुल कर योग्य आय की गणना वेतन, स्पेक्युलेटिवे इनकम, और बैंक जमा से ब्याज जैसे अन्य सभी आय शीर्षों को जोड़कर की जाएगी, इसलिए कुल आय होगी :
कुल आय = रु 1,000,000 ( वेतन ) + रु 200,000 (इंट्राडे इक्विटी ट्रेडिंग आय ) + रु 100,000 ( जमा पर ब्याज) = रु 1,300,000
इसलिए ट्रेडर को 13 लाख रुपये की इनकम पर टैक्स देना होगा। ऊपर बताए गए टैक्स स्लैब के आधार पर, टैक्स की गणना इस प्रकार होगी:
इनकम टैक्स स्लैब | |
आय स्लैब | टैक्सेशन |
0- रु 2.5 लाख | 0 |
रु 2.5 लाख - रु 5 लाख | 5%= रु 12,500 |
रु 5 लाख - रु 10 लाख | 20% = रु 1 लाख |
रु 10 लाख और अधिक | 30% = रु 90 हज़ार |
कुल टैक्स लायबिलिटी = इनकम टैक्स + कैपिटल गेन टैक्स = रु 2,05,000 + रु 15000 = रु 2,20,000
फ्यूचर और ऑप्शन ट्रेडिंग की इनकम को नॉन-स्पेक्युलेटिवे बिज़नेस इनकम की तरह देखा जाता है और इसकी टैक्स गणना उसे प्रकार होती है जैसे इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए की जाती है।
तो ऊपर वाले उदाहरण में मान लेते है कि ट्रेड ने 2,00,000 का मुनाफा ऑप्शन ट्रेडिंग में कमाया तो अब यहाँ पर टोटल इनकम की वैल्यू इस प्रकार होगी:
कुल आय = रु 1,000,000 ( वेतन ) + रु 200,000 (इंट्राडे इक्विटी ट्रेडिंग आय ) + 2,00,000 (ऑप्शन ट्रेडिंग टैक्स) + रु 100,000 ( जमा पर ब्याज) = रु 1,500,000
इनकम टैक्स स्लैब | |
आय स्लैब | टैक्सेशन |
0- रु 2.5 लाख | 0 |
रु 2.5 लाख - रु 5 लाख | 5%= रु 12,500 |
रु 5 लाख - रु 10 लाख | 20% = रु 1 लाख |
रु 10 लाख और अधिक | 30% = रु 1.5 लाख |
टोटल | 1,50000+ 100,000+ 12,500= रु 262,500 |
कुल टैक्स लायबिलिटी = इनकम टैक्स + कैपिटल गेन टैक्स = रु 262,500 + रु 15000 = रु 2,77,500
स्पेक्युलेटिवे ट्रेड में अगर नुकसान हो जाये तो उस नुकसान को आप लगातार चार वित्तीय वर्षों तक की अवधि के लिए आगे बढ़ा सकते है और उसे अवधि में हुए स्पेक्युलेटिवे से हुए मुनाफे के साथ ओफ़्सेट कर सकते है।
दूसरी ओर नॉन-स्पेक्युलेटिवे ट्रेड से उत्पन्न होने वाले नुकसान को लगातार आठ वित्तीय वर्षों तक की अवधि के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है। आप उसी वर्ष वेतन को छोड़कर किसी अन्य व्यावसायिक आय के विरुद्ध नॉन-स्पेक्युलेटिवे ट्रेड के हुए मुनाफे के साथ एडजस्ट कर सकते है।
इसे समझने के लिए यहां एक उदाहरण दिया गया है:
एक 30 वर्षीय व्यक्ति के पास निम्नलिखित वित्तीय स्थिति में हैं :
खानपान व्यवसाय से आय = रु 20 लाख
किराए से आय = रु 1. 2 लाख
नॉन स्पेक्युलेटिवे बिज़नेस से हुआ हानि = रु 2. लाख
नॉन स्पेक्युलेटिव बिज़नेस लॉसेस का उपयोग उसी वर्ष लाभ को समायोजित करने के लिए किया जा सकता है। इसलिए ट्रेडर की टैक्स लायबिलिटी होगी :
टैक्स योग्य आय = 2,000,000+120,000 – 220,000 = रु 19 लाख
टैक्स गणना इस प्रकार होगी :
ट्रेडिंग टैक्स की गणना | |
आय स्लैब | टैक्सेशन |
0- रु 2.5 लाख | 0 |
रु 2.5 लाख - रु 5 लाख | 5%= रु 12,500 |
रु 5 लाख - रु 10 लाख | 20% = रु 1 लाख |
रु 10 लाख और अधिक | 30% = रु 2.7 लाख |
टोटल | 270,000+100,000+12,500 = रु 382,500 |
आइए एक और उदाहरण देखें जो अब तक समझाए गए सभी बिंदुओं को सारांशित करता है।
30 वर्षीय व्यक्ति की निम्नलिखित वित्तीय स्थितियाँ हैं :
वेतन: ₹10,00,000/-
अंशकालिक व्यवसाय से आय: ₹5,00,000/-
बैंक जमा पर ब्याज: ₹1,00,000/-
इंट्राडे इक्विटी ट्रेडिंग से आय: ₹5,00,000
नॉन-स्पेक्युलेटिवे ट्रेडिंग लॉस: ₹2,00,000/-
इस मामले में ट्रेडर को नॉन-स्पेक्युलेटिवे ट्रेड में हानि हुए है जिसको ट्रेडर अपनी स्पेक्युलेटिवे ट्रेड में कमाए हुए मुनाफे के साथ एडजस्ट कर सकता है।
टैक्सेबल स्पेक्युलेटिवे बिज़नेस इनकम की गणना
टैक्स योग्य स्पेक्युलेटिवे इनकम = स्पेक्युलेटिवे बिज़नेस इनकम – नॉन-सेप्सुलेटिवे बिज़नेस इनकम
टैक्सेबल स्पेक्युलेटिव बिज़नेस इनकम = 500,000 – 200,000 = रु 3 लाख
टैक्सेबल इनकम की गणना
टैक्सेबल इनकम = वेतन + अन्य व्यावसायिक आय + स्पेक्युलेटिव बिज़नेस इनकम – नॉन स्पेक्युलेटिव बिज़नेस लॉस + बैंक जमा पर ब्याज
टैक्सेबल इनकम = 1,000,000 + 500,000 + 100,000 + 300,000 = 19,00,000
इसलिए टैक्स की गणना इस प्रकार होगी :
नुक्सान होने पर टैक्स की गणना | |
आय स्लैब | टैक्सेशन |
0- रु 2.5 लाख | 0 |
रु 2.5 लाख - रु 5 लाख | 5%= रु 12,500 |
रु 5 लाख - रु 10 लाख | 20% = रु 1 लाख |
रु 10 लाख और अधिक | 30% = रु 2.7 लाख |
टोटल | 270,000+100,000+12,500 = रु 382,500 |
अगर आप शेयर मार्केट में नए है तो उसके लिए ज़रूरी है कि आप स्टॉक मार्केट के सभी सेगमेंट में लग रहे टैक्स और उससे जुड़ी पूरी जानकारी रखे और उसके अनुसार ही अपने ट्रेड में होने वाले फायदे और नुकसान को की गणना करें।
इन सब टैक्स के अलावा हर एक ट्रेड पर आप पर सिक्योरिटीज ट्रांसक्शन टैक्स भी लगाया जाता है जिसकी वैल्यू एक्सचेंज द्वारा निर्धारित की जाती है।
स्टॉक मार्केट में निवेश करने के लिए और सही स्टॉकब्रोकर को चुनने के लिए अभी संपर्क करें। हमारी टीम आपको बहुत ही सरल तरीके से स्टॉक मार्केट में प्रवेश करने में मदद करेगी।
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]]>तो शुरू करते है कि सेबी की स्थापना की ज़रुरत क्यों पड़ी?
1980 के समय कैपिटल मार्केट भारत के लोगों के बीच सनसनी बनकर उभरा था और इसके साथ कीमतों की हेराफेरी स्टॉक एक्सचेंज के नियम और विनियमन का उलंघन, शेयर के डिलीवरी में देरी, कंपनी के प्रावधान का अनुपालन नहीं करना जैसे भ्रष्टाचार को बढ़ाने की गतिविधि में भी काफी बढ़ोतरी हुई।
इन सभी भ्रष्टाचार गतिविधियों की वजह से आम लोगों और निवेशकों के कैपिटल मार्केट की ओर दिलचस्पी कम होने लगी थी। इस वजह से सरकार ने इन सभी भ्रष्टाचार गतिविधियों को खत्म करने के लिए सेबी की स्थापना की।
आज इस सन्दर्भ में सेबी की भूमिका, संघटन की संरचना, सेबी के कार्य, सेबी के अधिकार या शक्तियाँ और सेबी के उद्देश्य के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे।
सभी शेयर बाजार प्रतिभागियों के लिए सेबी रक्षक की तरह कार्य करता है और इसका मुख्य उद्देश्य वित्तीय बाजार के उत्साही लोगों के लिए और सिक्योरिटीज बाजार को प्रभावी और आसानी से काम करने के लिए उचित वातावरण प्रदान करना होता है।
सेबी अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इन सभी चीज़ों को सुचारु रूप से विनियमित करने के लिए सेबी तीन खास श्रेणी का विशेष ध्यान रखता है जो इस प्रकार हैं।
इन्ही सबके हितों में फैसला लेने के लिए सेबी के बोर्ड में 9 लोगों की सदयस्ता है जो की निम्नलिखित है:
सेबी के अधिकार के साथ इस संघटन के मुख्य तीन कार्य इस प्रकार हैं:
जैसाकि नाम से पता चलता है, ये सभी कार्य निवेशकों और अन्य वित्तीय प्रतिभागियों के ब्याज की सुरक्षा सेबी द्वारा विनयमित की जाती है।
जो इस प्रकार है:
नियामक कार्य का काम वित्तीय बाजार के व्यापर के कार्य की जांच करना है।
इसमें ये सभी कार्य शामिल है:
सेबी के अधिकार में कुछ विकास कार्य भी शामिल जो निम्नलिखित दिए गए है:
कार्य के बाद अब बात करते है कि सेबी की शक्तियां क्या है और किस तरह से ये मार्केट को रेगुलेट करने में सहायक है:
तो ये थे सेबी के अधिकार जिनके आधार पर वह स्टॉक मार्केट में किसी भी तरह की धोखाधड़ी को रोकने का प्रयास करता है और साथ ही नियम और कानूनों लागू कर निवेशक और ब्रोकर की हर चाल पर नज़र रखता है।
सेबी का गठन मूल रूप से कैपिटल मार्केट में हो रहे धोखाधड़ी को रोकने के लिए किया गया था सेबी के मुख्य कार्यों में से एक कैपिटल मार्किट की विनियमित करना है।सेबी समय-समय पर कई तरीके और उपाय निवेशकों की सुरक्षा के लिए जारी किए हैं जिससे निवेशकों के कैपिटल मार्केट की ओर दिलचस्पी में काफी बढ़ोतरी हुई।
सेबी के अधिकार: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. सेबी क्या कार्य करता है?
निवेशकों की सिक्योरिटीज के ब्याज की सुरक्षा और सिक्योरिटीज बाजार के विकास को बढ़ावा और विनियमित करता है।
2. सेबी निवेशकों के हितों की रक्षा कैसे कर रहा है?
सेबी ने निवेशकों की हितों को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय बताएं हैं और कई निवेशक जागरूकता कार्यक्रम संचालित किये हैं, निवेशक जागरूकता कार्यक्रम ने बहुत सहायता की है और ऐसा करना जारी रखेगा।
3. भारतीय वित्तीय व्यवस्था में सेबी की क्या भूमिका है?
भारतीय वित्तीय व्यवस्था में सेबी की मुख्य भूमिका भारतीय स्टॉक बाजार को व्यवस्थित तरीके से विनयमित करना है।भारतीय स्टॉक बाजार में सेबी का गठन ट्रेडर्स और निवेशकों की सुरक्षा के लिए गठन किया गया था।
4. सेबी के कर्त्तव्य क्या हैं?
सेबी का मुख्य कर्तव्य भारतीय कैपिटल बाजार को विनियमित करना है। यह स्टॉक मार्केट की निगरानी और विनियमित करता है और यह कुछ नियमों और विनियमों को लागु करके निवेशक के ब्याज की सुरक्षा करता है।
एक सुरक्षित निवेश के लिए ज़रूरी है एक सही स्टॉकब्रोकर का चयन करना और अगर आप स्टॉक मार्केट में निवेश करने हेतु स्टॉकब्रोकर को ढूंढ रहे है तो नीचे दिए गए फॉर्म में जानकारी भरे और एक सही ब्रोकर के साथ शेयर मार्केट में निवेश करें।
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]]>The post Share Kharidne Wala App appeared first on अ डिजिटल ब्लॉगर.
]]>भारत में शेयर बाजार ट्रेडिंग और मुनाफा कमाने के लिए आपको share market ke liye best app चुनने और कुछ शेयर बाजार के नियम का अनुसरण करना आवश्यक है।
बेहतर ट्रेडिंग ऐप को ढूंढ़ने अगर आप जाएंगे तो आपको हर स्टॉकब्रोकर अपनी ऐप दुनिया की सबसे बढ़िया ऐप कह कर बेचने की कोशिश करेगा। हो सकता है उसकी ऐप ठीक ठाक हो लेकिन ये भी हो सकता है के वो ऐप बिलकुल खरा दर्जे की हो।
आइए, इस सन्दर्भ में बेहतर share kharidne wala app के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे।
एंजेल वन एक फुल-सर्विस स्टॉकब्रोकर है जो NSE, BSE पर पंजीकृत है. ये निवेशकों को अलग-अलग ट्रेडिंग विकल्प में निवेश करने की सेवा देता है जैसे इक्विटी, डेरीवेटिव, कमोडिटी और करेंसी।
यह अलग-अलग सेगमेंट में निवेश करने के अलावा निवेशकों के लिए एक बेहतरीन ट्रेडिंग ऐप भी देता है.
और यह ऐप आप जिस विशेष स्टॉक में निवेश करना चाहते हैं उस स्टॉक का विश्लेषण करने और और स्टॉक के रियल टाइमिंग की जानकारी में सहायता करता है, और इसके साथ स्टॉक विश्लेषण को आसान बनाने के लिए टेक्निकल इंडीकेटर्स और इंटेरेक्टिव चार्ट भी प्रदान करता है।
एंजेल वन मोबाइल ऐप के विवरण इस प्रकार हैं-
एंजेल वन मोबाइल ऐप विशेषताएं इस प्रकार है-
ज़ेरोधा भारत में टॉप स्टॉक ब्रोकर्स में से एक है यह ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए समय-समय पर अपनी सेवा को बेहतर करता है यह अपने निवेशकों को आसान और तेज प्लेटफार्म प्रदान करता है।
शेयर बाजार में इसके कई टॉप स्टॉक ब्रोकर्स प्रतिद्वंदी हैं जैसेकि IIFL मार्केट्स, एंजेल वन, 5पैसा ऐप।
ज़ेरोधा काइट ऐप के विवरण इस प्रकार है:
जेरोधा काइट ऐप की विशेषताएं इस प्रकार हैं:
कुछ चार्ट इस प्रकार हैं-कैंडल स्टिक,बार्स,कॉलर्ड बार,लाइन।
आईआईफएल सिक्योरिटीज आसान ट्रेडिंग प्लेटफार्म प्रदान करता है। यह एक फुल टाईम स्टॉकब्रोकर है यह अपने ग्राहक को उचित परामर्श और बेहतर ब्रोकरेज सेवाएं प्रदान करता है।
यह निवेशकों के लिए आसान और सहज ट्रेडिंग प्लेटफार्म प्रदान करता है।
IIFL ऐप के विवरण इस प्रकार है:
IIFL ऐप की विशेषताएं इस प्रकार हैं:
मोतीलाल ओसवाल भारत के टॉप स्टॉक ब्रोकर में से एक है और सबसे पुराने स्टॉक ब्रोकर में से एक है।
आप मोतीलाल ओसवाल ऐप का आसानी से उपयोग कर सकते है।
मोतीलाल ओसवाल अपने निवेशक की जरुरत के अनुसार अलग-अलग ऐप सेवा प्रदान करता है।
जो निवेशक लॉन्ग-टर्म के लिए निवेश करना चाहते हैं, उनके लिए MO इन्वेस्टर ऐप है।
जो ट्रेडर्स शार्ट टर्म ट्रेडिंग करना चाहते हैं उनके MO ट्रेडर ऐप है।
आप MO इन्वेस्टर ऐप के जरिए विशेष स्टॉक के तकनीकी विश्लेषण करके आसानी से आर्डर प्लेस कर सकते है।
मोतीलाल ओसवाल ऐप भारत देश में सबसे ज्यादा उपयोग किए जाने वाले स्टॉक ब्रोकर ऐप में से एक है।
आप इस ऐप के जरिए गोल्ड और करेंसी में भी निवेश कर सकते है।
मोतीलाल ओसवाल ऐप के विवरण इस प्रकार है:
5पैसा एनएसइ, बीएसइ पंजीकृत कंपनी है। यह भारत आधारित डिस्काउंट ब्रोकिंग कंपनी है। 5पैसा इक्विटी, डेरीवेटिव, कमोडिटीज और करेंसी सेग्मेंट्स और म्यूच्यूअल फण्ड, पर्सनल लोन, और इन्शुरन्स की सेवा प्रदान करता है।
यह अपने निवेशकों के लिए आसान और सुलभ ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म प्रदान करता है।
5 पैसा ऐप के विवरण इस प्रकार है:
5पैसा ऐप की विशेषताएं इस प्रकार हैं:
अपस्टॉक्स मुंबई आधारित स्टॉक ब्रोकर है इस मोबाइल ऐप के उपयोग से आप एनएसइ और बीएसइ जैसे स्टॉक एक्सचेंज पर आप अलग-अलग सेग्मेंट्स जैसे इक्विटी, मुद्रा या करेंसी और फुटुरेस एंड सेग्मेंट्स के जरिए विभिन्न सेग्मेंट्स में ट्रेड कर सकते हैं।
अपस्टॉक्स आसानी से उपयोग करने वाला ऐप है जिससे इसके ग्राहक आसानी से कही से भी निवेश कर सकते हैं।
अपस्टोक्स ऐप का विवरण इस प्रकार है:
अपस्टॉक्स ऐप की विशेषताएं इस प्रकार है:
चॉइस ब्रोकिंग मुंबई आधारित फुल सर्विस स्टॉक ब्रोकिंग फर्म है चॉइस ब्रोकिंग ऑनलाइन ट्रेडिंग और तरह-तरह के वित्तीय प्रोडक्ट्स जैसेकि इक्विटी, डेरिवेटिव्स (derivatives meaning in hindi), करेंसी, कमोडिटीज म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश करने का अवसर देता है।
चॉइस ब्रोकिंग फर्म NRI ट्रेडिंग और अन्य निवेश सेवा में निवेश करने का अवसर देता है।
चॉइस ब्रोकिंग ऐप का विवरण इस प्रकार है:
चॉइस ब्रोकिंग ऐप की विशेषताएं:
निष्कर्ष
बाजार में कई स्टॉकब्रोकर निवेशकों के लिए ट्रेडिंग ऐप प्रदान करते हैं जिससे आप ट्रेडिंग आसानी से कर सकते है।
लेकिन आपको शेयर मार्केट में निवेश करने के लिए सही ट्रेडिंग ऐप चुनने की जरुरत होती है जिससे आप आसानी से ट्रेडिंग कर सकें।
और कई स्टॉक ब्रोकर फर्म विशेष कंपनी के शेयर के बारे में जानकारी उस कंपनी की वित्तीय व्यवस्था ी जानकारी देते हैं जिससे आपको सही स्टॉक चुनने में परेशानी नहीं होती है।
यदि आप भी शेयर मार्केट में निवेश कारण चाहते है, आज ही अपना डीमैट अकाउंट खोलें:
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]]>हालांकि सेबी केवल एक रेगुलेटरी बॉडी के रूप में काम नहीं करती बल्कि यह भारत के वित्तीय बाजार के लिए एक अहम रोल निभाती है।
सेबी के अधिकार की बात करें तो रेगुलेटरी बॉडी के पास वह सभी अधिकार है जिससे वह ट्रेडिंग, मार्जिन और ब्रोकर के कार्य को शुरू और रोक सकता है लेकिन इसके साथ सेबी के कार्यों को मुख्य रूप से तीन कैटेगेरी में बांटा जा सकता है..
सेबी द्वारा निवेशक सुरक्षा उपाय
सुरक्षात्मक कार्य के अंतर्गत सेबी वित्तीय बाजार में निवेशकों को सुरक्षा प्रदान करता है। किसी भी वित्तीय बाजार में निवेशक सबसे अहम होते हैं इसलिए सेबी यह सुनिश्चित करती है कि निवेशक किसी भी ट्रेड धोखाधड़ी का शिकार न बने।
इसके लिए सेबी नियमित अंतराल पर निवेशकों को जागररूक करने के लिए सेमिनार आयोजित करती है जिसके माध्यम से निवेशकों को उनके अधिकार के बारे में बताया जाता है।
निवेशक अपने अधिकार के बारे में जानेंगे तो उनके साथ धोखाधड़ी की संभावनाएं कम होगी।
सेबी में शिकायत कैसे करें?
यदि निवेशक को किसी भी तरह की समस्या आ रही है तो वो आसानी से सेबी के वेबसाइट पर जाकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। इसके अलावा निवेशक टॉल फ्री नंबर 1800 266 7575 भी संपर्क कर सकते हैं।
पिछले 10 सालों की बात करें तो वित्तीय बाजार से जुड़ी धोखाधड़ी में कमी आई है। ये सेबी के सफलता की कहानी बयां करती है।
असीमित उतार-चढाव को नियंत्रित करना..
कॉर्पोरेट समूह द्ववारा लाए गए पूर्व नियोजित उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करना भी सेबी की जिम्मेदारी है जिससे निवेशकों को ज्यादा नुकसान न उठाना पड़े।
मीडिएटर के रूप में सेबी
सेबी फाइनेंशियल मीडिएटर के रूप में भी काम करती है। इसके अंतर्गत ये बाजार में हो रहे लेन-देन को मॉनिटर करती है और उसे सुरक्षित रूप से पूरा कराती है।
वित्तीय बाजार को सुचारू रूप से चलाने के लिए सेबी लगातार प्रयासरत रहती है। इसके लिए वो आवश्यकतानुसार नियमों में बदलाव, नए नियम आदि लाते रहती है।
सेबी द्वारा किए गए इस प्रकार के कदमों की बात करें तो डीमैट अकाउंट की अनिवार्यता निवेशकों के लिए एक टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। इसके अलावा एक्सचेंज के माध्यम से आईपीओ की अनुमति देना भी एक बड़ा कदम है।
कोई भी संस्था हो यदि उसे चलाने के लिए ठोस नियम और कानून न हो तो संस्थाएं बेलगाम हो जाती हैं। इसके लिए सेबी वित्तीय बाजार को रेगुलेट करती है।
म्यूचुअल फंड के नियम पर सेबी की नजर
सेबी द्वारा लागू की गई गाइडलाइन को फाइनेंशियल मीडिएटर और कॉर्पोरेटर द्वारा मानना होता है। सभी स्टॉक ब्रोकर सेबी में रजिस्टर होते हैं। सेबी म्यूचुअल फंड के कामकाज और कंपनियों के अधिग्रहण को नियंत्रित करती है।
निष्कर्ष
इस प्रकार सेबी ट्रेडर और निवेशकों को वित्तीय बाजार में सुरक्षा के साथ-साथ पारदर्शिता प्रदान करती है जिससे निवेशक बिना डरे खुलकर अपने पैसों का निवेश कर सकते हैं।
उन्हें यह विश्वास होता है कि उनके साथ कोई धोखाधड़ी नहीं होगी और अगर किसी तरह की धोखाधड़ी होगी भी तो उसके लिए सेबी मौजूद है।
इतना ही नहीं निवेशक डायरेक्ट सेबी से अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। अपने निवेश को सुरक्षित रखने के लिए आप यह भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि जहां आप अपना पैसा लगा रहे हैं वो सेबी पर पंजीकृत है या नहीं यदि नहीं तो फिर उससे दूर रहने में ही आपकी भलाई है।
अभी डीमैट अकाउंट खुलवाने के लिए नीचे दिए फॉर्म में अपनी जानकारी दर्ज करें।
यहाँ अपना नाम और मोबाइल नंबर दर्ज करें और उसके बाद शीघ्र ही आपको एक कॉलबैक प्राप्त होगी।
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]]>शेयर बाजार में निवेश करना मुनाफे का काम है लेकिन शेयर में निवेश करने से पहले आपको शेयर खरीदने का तरीका की जानकारी होना आवश्यक है क्योंकि आप शेयर खरीद तो लेते हैं पर उससे मुनाफा नहीं कमा पाएंगें।
शेयर मार्केट को अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो शेयर मार्केट में हम NSE, BSE पर पंजीकृत कंपनी के शेयर खरीद लेते हैं और फिर उसे ऊँचे दामों में शेयर की बिक्री कर मुनाफा कमा सकते हैं। साथ ही आप एक्सचेंज के इंडेक्स जैसे की निफ़्टी 50 में भी निवेश कर सकते है। आज इस लेख में जानेंगें की शेयर के साथ निफ़्टी 50 में निवेश करे करें।
आइए, इस सन्दर्भ में हम शेयर खरीदने का तरीका, ऑनलाइन शेयर कैसे खरीदें, शेयर मार्केट में निवेश कैसे करें, शेयर खरीदने के नियम इत्यादि के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे।
शेयर खरीदने से पहले आपको शेयर मार्केट‘से जुड़े महत्वपूर्ण जानकारी रखना आवश्यक है आपको सही शेयर में निवेश करने से पहले आपको उस विशेष शेयर के बारे में उचित अनुसन्धान करना जरुरी है।
शेयर्स खरीदने और बेचने के लिए आपको सही शेयर्स खरीदने और बेचने की जरुरत है, शेयर खरीदने और बेचने के लिए आपको अपने ब्रोकर को सूचित करने की जरुरत है की कौन सा शेयर, शेयर्स की संख्या, शेयर्स किस कीमत पर खरीदना चाह रहें हैं।
उदाहरण के तौर पर, यदि आप टाटा के शेयर खरीदना (Tata ke share kaise kharide) चाहते हैं तो आपको कुछ जानकारी ब्रोकर को देनी होगी |
जैसे अगर आप टाटा के 20 शेयर्स खरीदना चाह रहें प्रत्येक शेयर के दाम 2425 रुपए हैं, आपको ब्रोकर को सूचना देने की जरुरत है शेयर: टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड : शेयर की संख्या 20 कीमत: 895।
ऑनलाइन ब्रोकर्स अक्सर ग्राहक सेवा की सुविधा प्रदान करते है जहाँ आप आसानी से आर्डर प्लेस कर सकते है यदि आप इंटरनेट से नहीं आर्डर कर पा रहे हैं।
शेयर्स की बिक्री और खरीद केवल दो स्टॉक ऐक्सचैंजेस में होती है: बी एस इ ( बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) और एन एस इ (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) आपको अपने ब्रोकर को दर्शाने की जरुरत होती है, जैसाकि आमतौर पर दोनों स्टॉक एक्सचेंजेस शेयर्स की कीमत में अंतर होता है।
आपको शेयर्स खरीदने के लिए, आपको सेबी के अनिवार्य नियम के अनुसरण करने की जरुरत है आपको स्टॉक मार्केट में ट्रेडिंग के लिए हमेशा ट्रस्टेड ब्रोकर का चुनाव करना चाहिए।
निफ़्टी 50 (Nifty 50 kya hai) शेयर मार्केट का इंडेक्स है जो टॉप 50 कंपनी के आधार पर ट्रेंड करता है। अब इसमें लिस्टेड कम्पनीज के साथ आप निफ़्टी ५० में भी ट्रेड कर सकते है।
जानना चाहते है कैसे?
उसके लिए आपको स्टॉक मार्केट में डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग (derivatives meaning in hindi) का विकल्प प्रदान किया जाता है, जिसमे ट्रेंड के अनुसार आप फ्यूचर और ऑप्शन में ट्रेड पोजीशन ले सकते है। निफ़्टी 50 इंडेक्स की एक्सपायरी हर हफ्ते होती है जिससे आपको मुनाफा कमाने के कई विकल्प मिलते है।
इसके अलावा अगर आप म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश करने की सोच रहे है तो उसके लिए निफ़्टी इंडेक्स फंड्स का विकल्प होता है जो आपको टॉप इंडेक्स फण्ड में निवेश करने का और रिटर्न कमाने का विकल्प प्रदान करता है।
शेयर में ट्रेड या निवेश करने की तरह ही निफ़्टी ५० में निवेश के लिए भी आपको स्टॉक ब्रोकर के साथ डीमैट खाता खोलना होता है और साथ ही फ्यूचर और ऑप्शन सेगमेंट को एक्टिवेट करने के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ जैसे; इनकम स्टेटमेंट, सैलरी स्लिप आदि देनी होती है।
इसके बाद आप ट्रेड करने के लिए फ्यूचर या ऑप्शन में से एक विकल्प और एक्सपायरी डेट को चुने। ऑप्शन ट्रेड (option trading in hindi) करने के लिए आपको अलग-अलग स्ट्राइक प्राइस और कॉल और पुट का विकल्प मिलता है।
तो अगर आप निफ़्टी के बुलिश ट्रेंड में में ऑप्शन ट्रेडिंग करना चाहते है तो आपको कॉल ऑप्शन खरीदने और पुट ऑप्शन बेचने का विकल्प मिलता है। इसके विपरीत बेयरिश ट्रेंड में आप पुट ऑप्शन खरीद और कॉल ऑप्शन बेच सकते है।
आप आवश्यक डीमैट अकाउंट का इस्तेमाल करके किसी भी NSE या BSE में पंजीकृत कंपनी के शेयर खरीद सकते हैं और बहुत सारे फर्म ऑनलाइन शेयर खरीदने की आसान और सुलभ प्लेटफार्म प्रदान करते हैं।
इसके लिए आप किसी भी प्रचलित ब्रोकर फर्म से डीमैट अकाउंट खोलकर ऑनलाइन शेयर खरीद सकते हैं और आप अपने बैंक अकाउंट से भी शेयर खरीद सकते हैं, जैसेकि कई बैंक आम लोगों के लिए शेयर खरीदने की सुविधा देते हैं जैसे ICICI direct, SBI direct इत्यादि।
आजकल अधिकतर लोग ऑनलाइन शेयर को खरीदने की सेवा को ज्यादा प्रेफर करते हैं और इसके लिए ज़रूरी है share market ke liye best app का चुनाव करना।
ऑनलाइन शेयर खरीदने की प्रक्रिया इस प्रकार है
आप शेयर बेचने के लिए भी इस प्रक्रिया का अनुसरण कर सकते हैं, इसके लिए आपको BUY के स्थान पर SELL का विकल्प डालना होगा।
ऊपर दिए गए तरीके के आधार पर आपको शेयर खरीदने के तरीके के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिल गयी होगी
लेकिन आपको शेयर बाजार में लाभ कमाने के लिए कुछ नियमों को भी ध्यान में रखने की जरुरत है।
ये नियम इस प्रकार हैं:
शार्ट टर्म इन्वेस्टमेंट के लिए आप इंट्राडे ट्रेडिंग या स्विंग ट्रेडिंग का विकल्प चुनना चाहिए और लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट के लिए आप डिलीवरी ट्रेडिंग या पोसिशनल ट्रेडिंग का चुनाव करना चाहिए।
लॉन्ग-टर्म में आप सस्ते दाम में शेयर्स खरीद सकते हैं और जब शेयर्स के दाम में बढ़ोतरी होती है आप शेयर्स ज्यादा
दाम पर बेचकर मुनाफा कमा सकते हैं इस प्रकार लॉन्ग-टर्म निवेश में नुकसान की आशंका काफी कम रहती है।
शार्ट-टर्म ट्रेडिंग में इंट्राडे ट्रेडिंग करने की जरुरत होती है। इसके लिए आपको उचित शेयर खरीदकर उसी दिन बेचना होता है और आप इसमें कम समय में आसानी से ज्यादा रिटर्न पा सकते हैं इसमें नुकसान की आशंका काफी ज्यादा होती है।
आपको शेयर खरीदने से पहले कंपनी के बारे में अच्छे तरीके से अनुसन्धान करना आवश्यक है।
कंपनी के स्टॉक का मौलिक विश्लेषण करने के लिए आपको कंपनी के वित्तीय स्थिति की जांच करनी चाहिए जैसेकि बैलेंस शीट, प्रॉफिट और लॉस स्टेटमेंट, प्रति शेयर इनकम की जानकारी से आप आसानी से कंपनी की हालत और विकास के बारे में जानकारी मिलेगी।
तकनीकी विश्लेषण का मूल उद्देश्य शेयर्स के भविष्य की कीमत की सम्भावना को बताता है।
उस विशेष शेयर का चुनाव करें जो आपके बजट में हो और आपको ज्यादा मुनाफा दे वैसे शेयर का त्याग करें जो आपके बजट में न हो।
शेयर बाजार में शेयर्स के कीमत में उतार-चढाव होती रहती है आप शेयर्स के दाम में बढ़ोतरी होने पर बेच देने चाहिए जिससे आपको अच्छा रिटर्न मिलेगा।
अगर आप समय-समय पर निवेश करेंगे तो आप अलग-अलग दाम पर अलग-अलग कंपनी के शेयर खरीद सकते हैं इसमें आपको ज्यादा मुनाफा मिलेगा।
सेबी ने 1 सितम्बर 2020 से शेयर खरीद और बिक्री के लिए नियम में बड़े बदलाव किए हैं इस नियम की बदलाव की वजह से निवेशकों की सुरक्षा में बढ़ोतरी हुई।
कर्तव्य ऑनलाइन ने निवेशकों के साथ धोखा-धड़ी की थी उसके बाद से सेबी ने कैपिटल मार्केट में कई नियम बनाए इसलिए अगर आप शेयर बाजार में निवेश करना चाहते है तो आपको नियम पता होने चाहिए।
अगर आप शेयर मार्केट में निवेश शुरू करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको शेयर खरीदने की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी होना चाहिए।
और अपने वित्तीय उद्देश्यों को ध्यान में रखना चाहिए, आप लॉन्ग टर्म या शार्ट टर्म निवेश का जरिया चुन सकते है।
आपको किसी विशेष कंपनी के शेयर खरीदने से पहले आपको कंपनी के व्यापर, कंपनी क्या प्रोडक्ट बनाती है।
उस कंपनी की वित्तीय स्थिति क्या है के बारे में जांच करनी चाहिए।
आप शेयर मार्केट की यात्रा शुरू करना चाहते है, आज ही अपना डीमैट अकाउंट खोलें।
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