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डेरीवेटिव ट्रेडिंग या व्युत्पन्न ट्रेडिंग, ट्रेडिंग के सबसे दिलचस्प प्रारूप में से एक है जो शेयर बाजार में निवेश के लिए एक शानदार अवसर प्रदान करता है। Derivatives  Meaning in Hindi के बारे में विस्तार से समझते हैं।

डेरीवेटिव एक फाइनेंसियल कॉन्ट्रैक्ट (वित्तीय समझौता) होते है जो अंडरलाइंग एसेट्स यानी अन्तर्निहित  संपत्तियों से अपना मूल्य प्राप्त करते है ये अंतर्निहित संपत्ति स्टॉक, कमोडिटी, सूचकांक, करेंसी, ब्याज दर या एक्सचेंज रेट हो सकती है

डेरिवेटिव्स का मूल्य अंतर्निहित संपत्तियों के मूल्य पर निर्भर है। इस प्रकार, एक ट्रेडर भविष्य में किसी एसेट की क़ीमत का अनुमान लगाकर डेरिवेटिवस कॉंट्रैक्ट की भविष्य की क़ीमत का निर्धारण और ट्रेड कर सकता है

डेरीवेटिव ट्रेडिंग की बुनियादी जानकारी 

डेरीवेटिव ट्रेडिंग को फ्यूचर ट्रेडिंग या F&O(फ्यूचर और ऑप्शन) भी कहा जाता है। भारत में डेरीवेटिव ट्रेडिंग की शुरुआत सन 2000 में हुई थी।  डेरिवेटिव सबसे जटिल फाइनेंसियल इंस्ट्रूमेंट (वित्तीय साधनों) में से एक हैं, लेकिन यहाँ रिटर्न की संभावना भी ज्यादा है।

और यही कारण डेरीवेटिव ट्रेडिंग के लोकप्रिय होने का प्रमुख कारक बना।

डेरिवटिव ट्रेडिग एक ऐसी ट्रेडिग प्रक्रिया है जिसमें ट्रेडरों को भविष्य की कोई भी तारिख या किसी निश्चित मूल्य पर ट्रेड करने के लिए एक समझौते पर वैध रूप से सहमत होना होता है, लेकिन यह सब डेरिवेटिवस की अंतर्निहित संपत्ति का भविष्य में मूल्यों का आकलन करने के बाद किया जाता है

डेरीवेटिव ट्रेडिंग लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म निवेशकों दोनों के लिए लाभ कमाने का अवसर देता है।

यह एक सामान्य रूप से एसेट को ख़रीदने और बेचने की प्रक्रिया है। यहाँ  कॉन्ट्रैक्ट के समय पूरे पैसों का भुगतान एक साथ करने के बजाय केवल शुरूआती मार्जिन राशि का भुगतान किया जा सकता है और शेष राशि का भुगतान कॉन्ट्रैक्ट पूरा होने पर किया जा सकता  है

डेरीवेटिव के प्रकार 

डेरीवेटिव ट्रेडिंग को कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों के आधार पर निम्नलिखित प्रकारों में अलग किया गया है:

  • फ्यूचर ट्रेडिग: फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में दोनो पक्षों में से एक पक्ष पूर्व निर्धारित मूल्य और समय के अनुरूप अपनी संपत्ति खरीदने या बेचने के लिए बाध्य होते है लेकिन उसके लिए शर्तों एक समान ही रहती हैं।
  • फॉरवर्ड ट्रेडिग: फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में दोनों पक्ष पहले से परिभाषित मूल्य और समय के अनुरूप कॉंट्रैक्ट खरीदने या बेचने के लिए बाध्य तो होती है, लेकिन इसमें ख़रीदार और विक्रेता अपनी आवश्यकताओं के अनुसार शर्तों को बदल सकते है।
  • ऑप्शन ट्रेडिग: आप्शन कॉंट्रैक्ट के खरीददार किसी भी शर्त के लिए बाध्य नहीं होते है, लेकिन उनके पास सिक्योरिटीज को उनके पूर्व निर्धारित समय और मूल्य से पहले उसे खरीदने या बेचने का भी विकल्प होता है।
  • स्वैप ट्रेडिग: इसमें एक तरफ़ नक़दी प्रवाह तय किया जाता है और वही दूसरी तरफ़ ये परिवर्तनीय भी होता है और कई आधारभूत संपत्ति जैसे ब्याज दर, करेंसी एक्सचेंज रेट या सूचकांक मूल्य आदि पर आधारित होता है।

फ्यूचर और ऑप्शन में अंतर

जैसे की बताया गया है कि डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग के अलग-अलग प्रकार होते है जिनमे दो मुख्य प्रकार फ्यूचर और ऑप्शन है। अब शुरूआती ट्रेडर अक्सर इन दोनों ट्रेडिंग को लेकर असमंजस में रहते है।

वैसे तो दोनों ही डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट है जिसमे ट्रेडर आज की तारिख में आने वाले दिन (एक्सपायरी डेट) में ट्रेड सेटल करने के लिए पोजीशन लेता है

लेकिन फ्यूचर ट्रेडिंग में जहाँ दोनों बायर और सेलर ट्रेड एक्सेक्यूट करने के बाध्य होते है वही ऑप्शन ट्रेडिंग में बायर के पास ट्रेड करने का अधिकार तो होता है लेकिन वह इसके बाध्य नहीं होते

वही ऑप्शन सेलर एक्सपायरी पर वह ट्रेड को सेटल करने के लिए बाध्य होता है। इन दोनों ट्रेडिंग प्रकार को थोड़ा विस्तार से समझते है।

Futures Trading in Hindi

फ्यूचर ट्रेडिंग एक तरह का फाइनेंसियल कॉन्ट्रैक्ट है जिसमे दो लोग आने वाली निर्धारित तिथि और प्राइस पर किसी स्टॉक, इंडेक्स, कमोडिटी या करेंसी में ट्रेड करने के लिए बाध्य होते है

उदाहरण के लिए मान लेने है की XYZ कंपनी जिसका शेयर प्राइस ₹1000 प्रति शेयर है और आप इसको लेकर बुलिश है और इसलिए इसके 100 शेयर खरीदना चाहते है। यानी की टोटल ट्रेड वैल्यू ₹100000 होगी।

अब फ्यूचर मार्केट में इसे आज ₹100000 देकर ट्रेड करने के बजाये आप अपने ट्रेडिंग अकाउंट में कुछ मार्जिन रख कॉन्ट्रैक्ट खरीद सकते है जिसके अनुसार आप आने वाली एक्सपायरी डेट पर इस शेयर को ₹1000 के हिसाब से खरीद सकते है।

अब यहाँ पर 1 महीने बाद अगर शेयर का प्राइस ₹1000 से बढ़ गया तो आपको मुनाफा होगा लेकिन घटने पर सेलर (जिसने फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को बेचा होगा) को नुकसान।

यानी की फ्यूचर ट्रेडिंग में ज़्यादा जोखिम होते है और इसमें दोनों बायर और सेलर अंतनिर्हित परिसम्पति को एक्सपायरी वाले दिन खरीदने और बेचने के बाध्य होते है जिसके लिए उन्हें पोजीशन लेने के लिए अपने ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन रखना होता है

Option Trading in Hindi

ऑप्शन ट्रेडिंग जिसमे बायर किसी भी स्टॉक, इंडेक्स, कमोडिटी या करेंसी में आने वाली निर्धारित तिथि में ट्रेड करने का अधिकार तो रखता है लेकिन उसके बाध्य नहीं होता। अब इस अधिकार के लिए वह एक प्रीमियम अमाउंट सेलर को देता है। 

दूसरी तरफ ऑप्शन सेलर जो प्रीमियम लेता है वह आने वाली निर्धारित तिथि (एक्सपायरी डेट) पर उस ट्रेड को सेटल करने के लिए बाध्य होता है

इसको ऊपर दिए गए उदाहरण से समझते है और मान लेते है की आपने XYZ का ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट ख़रीदा था जिसके लिए आपने  ₹100 प्रीमियम दिया था। अब  शेयर का प्राइस एक्सपायरी वाले दिन बढ़कर ₹1300 हो गया तो यहाँ पर आप इस ट्रेड को सेटल करने का अधिकार रखते है और सेलर को शेयर ₹1000 रुपये के हिसाब से आपको बेचने होंगे।

वही अगर शेयर का प्राइस ₹1000 या उससे नीचे गिर जाता है तो बायर बिना ट्रेड को सेटल किये एक्सपायरी वाले दिन अपनी ट्रेड से निकल सकता है। 

तो एक तरह से बायर प्रीमियम देकर ऑप्शन बाय करता है और सेलर को मार्केट में जोखिम और वोलैटिलिटी के अनुसार अपने ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन रखना होता है

ऑप्शन ट्रेडिंग में मार्जिन को समझे तो ये वह राशि होती है जो आपका ब्रोकर रिस्क को मैनेज करने के लिए ट्रेडिंग अकाउंट में रखवाता है। समझने के लिए अगर आप 100000 वाली ट्रेड का ऑप्शन बेच रहे है जिसका मार्जिन 30% है तो वह पर आपको 30000 रुपये अपने ट्रेडिंग अकाउंट में रखने होंगे।


डेरीवेटिव ट्रेडिंग के उदाहरण

जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, डेरीवेटिव ट्रेडिंग कई प्रकार के होते हैं और प्रत्येक डेरीवेटिव प्रकार के अलग-अलग नियम होते है।

चलिए फ्यूचर ट्रेडिंग का एक उदाहरण लेते हैं।

मान लीजिये, हाल ही में भारत सरकार अपने इम्पोर्ट के संदर्भ में पॉवर सेक्टर (ऊर्जा क्षेत्र) को सब्सिडी देने की नीति लेकर आई। इस नीति का पेट्रो-प्रोडक्ट्स के उत्पादन पर सीधा प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि निर्माता अब उसी लागत के अंदर अधिक कच्चे माल का इम्पोर्ट कर सकते हैं।

इससे इन व्यवसायों का रेवेन्यू बढ़ेगा, जिससे पॉवर सेक्टर में आने वाली सभी कंपनियों का मुनाफा भी बढ़ेगा।

मान लीजिये आप आपने “रेलको पेट्रो” का स्टॉक चुनते है, जो वर्तमान में INR 660 के बाजार मूल्य पर ट्रेड कर रहा है।

आप इस उद्योग और स्टॉक के प्रति तेजी को लेकर पूरी तरह से आस्वस्त हैं। आप अनुमान लगाते है कि स्टॉक अगले महीने के अंत तक INR 900 मूल्य तक पहुंच जाएगा। इस प्रकार, आप INR 750 के मूल्य पर विक्रेता के साथ फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में जाते हैं।

इसका तात्पर्य यह है कि यदि स्टॉक मौजूदा बाजार मूल्य INR660 से INR750 से अधिक हो जाता है, तो आप मुनाफे में होंगे।

इस तरह के कॉन्ट्रैक्ट में, आपको एक विशिष्ट प्रीमियम राशि का भुगतान करना होगा जो विक्रेता के लिए प्रोत्साहन के रूप में काम करता है और कॉन्ट्रैक्ट के प्रति आपकी प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। मान लीजिये, यह नॉन-रिफंडेबल प्रीमियम राशि INR 2000 है।

यहां 3 स्थितियां हो सकती हैं:

  • स्टॉक का मूल्य INR 660 तक ही रहता है
  • स्टॉक का मूल्य INR 600 तक गिरता है
  • स्टॉक मूल्य INR 820 तक बढ़ता है

यदि ऊपर बताये स्थिति से पहली या दूसरी स्थिति सही होता है, तो आप कॉन्ट्रैक्ट का प्रयोग नहीं करेंगे और इसे समाप्त होने देंगे। सरल शब्दों में, आप विक्रेता को INR 660 पर कॉन्ट्रैक्ट बेचने के लिए नहीं कहेंगे, क्योंकि यह बाजार में पहले से ही बेहतर कीमत पर उपलब्ध है।

उस स्थिति में, आपका INR 2000 का प्रीमियम राशि विक्रेता द्वारा रिफंड नहीं किया जाएगा।

हालांकि, अगर तीसरी स्थिति सही साबित होता है, तो आप निश्चित रूप से INR 660 पर स्टॉक खरीदकर कॉन्ट्रैक्ट का उपयोग करना चाहेंगे और बाद में INR 820 की कीमत पर इसे बेचेंगे, जिससे आप ट्रेड पर ज्यादा लाभ कमायेंगे।

इस तरह से डेरीवेटिव ट्रेडिंग किया है जहां आप बाजार या स्टॉक से आपकी अपेक्षाओं के आधार पर खरीदार या विक्रेता हो सकते हैं।


डेरीवेटिव ट्रेडिंग रणनीति

डेरीवेटिव ट्रेडिंग के लिए कई रणनीतियां काम करती है। आमतौर पर इस बात पर निर्भर करते हुए कि आप व्युत्पन्न ट्रेडिंग के विकल्प या वायदा फार्म का उपयोग कर रहे हैं या यहां तक कि उसके भीतर, चाहे आप पुट ऑप्शन, कॉल ऑप्शन आदि के लिए जा रहे हैं, कई रणनीतियां हैं जिन्हें तैनात किया जा सकता है।

कुछ रणनीतियां हल्के जोखिम के साथ आती हैं, जबकि अन्य बाजार की अस्थिरता के आधार पर बहुत अधिक जोखिम में लाती हैं।

उसी समय, कुछ रणनीतियाँ सीमित लाभ क्षमता के साथ आती हैं जबकि कुछ ऐसी होती हैं जो असीमित लाभ भी देती हैं।

यहाँ सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली व्युत्पन्न व्यापारिक रणनीतियाँ हैं:

डेरिवटिव ट्रेडिग के लाभ

डेरिवटिव ट्रेडिग ट्रेडरस को कई तरह के लाभ प्रदान करता है और यह ट्रेडिग का एक प्रभावी तरीका है। डेरिवेटिवस में ट्रेडिग के कुछ फायदे निम्नानुसार हैं:

हेजिग (बचाव-व्यवस्था):

डेरिवटिव ट्रेडिग हेजिग (बचाव-व्यवस्था) सबसे अच्छा तरीक़ा है, जिसका अर्थ है की ट्रेडर अपनी आधारभूत प्रतिभूतियों में कीमत में उतार-चढ़ाव के खिलाफ भी खुद की रक्षा करता सकता है। और मौजूदा बाजार में क़ीमतों में उतार-चढ़ाव से जुड़े रिस्क्स को कम करने के लिए, फ़्यूचरस बाजार में काउंटर-पोजीशन ले जा सकते हैं

उदाहरण के लिए, यदि कोई ट्रेडर IBM के शेयर्स रखता है और किसी बाहरी घटना के कारण शेयरों की कीमतों में गिरावट की उम्मीद कर रहा है, तो डेरिवटिव ट्रेडिग का उपयोग करके वो IBM शेयर स्टॉक को फ़्यूचर में बेच सकता है जिसे वो अपने होने वाले नुकसान को संभाला सकता है।

निफ्टी 50 कहता है, इसी तरह कोई भी ट्रेडर अपने पोर्टफोलियो से संबंधित इंडेक्स में काउंटर-पोजिशन भी ले सकता है, और अपनी कमज़ोर स्थिति को खत्म कर मुनाफ़ा कमा सकता है।  ये मुनाफ़ा उसकी प्रतिभूतियों की क़ीमतों में होने वाली गिरावट के कारण होने वाले नुक़सान की पूर्ति करता है।

इसके अलावा, डेरिवटिव ट्रेडिग का उपयोग आयातक और निर्यातकों के द्वारा मुद्रा बाजारों में मूल्य अस्थिरता से बचाव के लिए भी  किया जाता है। क्यूँकि यदि डॉलर या किसी और अन्य मुद्रा के मुकाबले रुपया गिरता है, आयातित सामान महँगे हो जाते हैं और फिर इन से होने वाले नुक़सान को कम करने लिए आयातकों को आधारभूत संपत्ति के रूप में मुद्रा देने के साथ डेरिवेटिवस का उपयोग किया जाता है।

लिवरेज (मुनाफ़ा होना)

डेरिवेटिवस ट्रेडिग अपने निवेशक को पूरे कॉंट्रैक्ट में केवल छोटे मूल्यों को मार्जिन के रूप में भुगतान करने का अवसर प्रदान करता है, और इस प्रकार वह ट्रेड में कम पूँजी लगा कर ज़्यादा मुनाफ़ा कम सकता है।

आरबीटेज

डेरिवटिव ट्रेडिग का उपयोग विभिन्न बाज़ारों मे किसी की भी क़ीमत में अंतर का लाभ उठाने के लिए किया जा सकता है। क्यूँकि प्रतिभूतियों को एक बाज़ार से कम क़ीमत पर ख़रीद कर दूसरे बाज़ार में अधिक क़ीमत पर बेचा जा सकता है जिस से आरबीटेज  मुनाफ़ा कहते है।

ख़ाली प्रतिभूतियों से पैसा कमाना:

यह तक की यदि निवेशक लंबे समय तक लिए ख़रीदे हुए शेयरों को बेचना नहीं चाहता है तो भी वह डेरिवटिव ट्रेडिग का उपयोग करके बाज़ार में होते क़ीमतों के उतार-चढ़ाव का लाभ भी उठा सकता है, क्यूँकि डेरिवटिव ट्रेडिग के लिए फ़िज़िकल सेटल्मेंट (प्रकृति  समझोते) की आवश्यकता नहीं होती है।

डेरिवेटिव ट्रेडिग में बहुत से लाभों के साथ साथ बहुत जोखिम भी होते है। इस बात को मानने के लिए हमें कोई आपत्ति नहीं है की ट्रेडिग में हमें अप्रत्याशित नुकसान भी हो सकते हैं और साथ ही साथ ट्रेडिग में कोई गारंटीकृत लाभ भी नहीं होते है।

इसलिए हम निवेशको को यही सलाह देते है की वो केवल अपनी विचार करने की क्षमता और अपनी फ़ायनैन्शल कंडिशंस (वितिय स्थितियों) के आधार पर ही सावधानी बरतते हुए ट्रेडिग करे। यह रास्ता उन ट्रेडरस के लिए उपयुक्त नहीं है जिनके पास जोखिम लेने की क्षमता कम होने के साथ साथ सीमित संसाधन और सीमित ट्रेडिग अनुभव है।

यदि आप शेयर बाजार में ट्रेडिग  के साथ शुरुआत करना चाहते हैं, तो आप नीचे दिए गए फॉर्म में अपना विवरण प्रदान कर सकते हैं। जिसके तुरंत बाद आपके लिए एक कॉलबैक की व्यवस्था की जाएगी:

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