IV in option chain या फिर कहें ऑप्शन ट्रेडिंग में IV यानी की Implied Volatility एक बहुत जरूरी पहलु होता है | इसकी मदद से ऑप्शन के प्रीमियम मे भविष्य में बढ़ने और गिरने की दर का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऑप्शन चैन के अंदर IV का डेटा मिलता है जिसकी मदद से ट्रेडर को प्रीमियम के ऊपर और नीचे जाने की गति का भी अंदाजा हो जाता है।
स्टॉक मार्किट में आपने वोलैटिलिटी के बारे में तो सुना होगा, बाज़ार के तेजी से ऊपर और नीचे जाने को वोलैटिलिटी से पर्दर्शित किया जाता है।
ऑप्शन चैन में IV (Implied Volatility) क्या होता है।
ऑप्शन चैने के अंदर कॉल और पुट (call and put option in Hindi) दोनों साइड में IV डाटा दिया होता है, हर एक स्ट्राइक प्राइस का अलग-अलग IV होता है।
ऊपर दर्शाए गए चित्र में हम देख पा रहे है की Volume और LTP (LTP Meaning in Stock Market in Hindi) के कोलम के बीच में IV का कोलम दिया गया है।
IV की मदद से ये पता नहीं किया जा सकता की बाज़ार किस तरफ को जाएगा, पर ऊपर या नीचे कितनी रेंज तक जा सकता है इस बात का पता लगाया जा सकता है।
ऑप्शन चैन में IV (इम्प्लाइड वोलैटिलिटी) का क्या महत्व है।
इम्प्लाइड वोलैटिलिटी ऑप्शन चैन में ट्रेडर को उसकी चुनी हुई स्ट्राइक प्राइस (Strike Price in Hindi) पर जो प्रीमियम है उसके ऊपर जाने और नीचे जाने की गति को बताता है। इम्प्लाइड वोलैटिलिटी प्राइस के इतिहास यानी की उसके हिस्टोरिकल डाटा की और वर्तमान के डाटा की गणना करके निकाली जाती है।
IV की मदद से बाज़ार के पर और नीचे जाने की रेंज का पता लगाया जा सकता है पर ये बिलकुल पुख्ता नहीं होता की इतनी ही रेंज होगी। इससे एक नजरिया बनाया जा सकता है। और उस नजरिये को आधार बनाकर ऑप्शन में ट्रेडिंग की जा सकती है।
मान लो की किसी स्टॉक या ऑप्शन का प्राइस 100 रुपये है और उसकी वोलैटिलिटी 10 है तो वो स्टॉक
100 से लेकर 110 रुपये के बीच में ऊपर की तरफ ट्रेड कर सकता है और 100 से 90 रुपये के बीच नीचे की तरफ ट्रेड कर सकता है। यानी की 90 रुपये से लेकर 110 रुपये के बीच में प्राइस मूव कर सकता है।
High इम्प्लाइड वोलैटिलिटी और Low इम्प्लाइड वोलैटिलिटी क्या होता है।
इम्प्लाइड वोलैटिलिटी में एक रेंज होती है जिससे पता चलता है की बाज़ार कितना ऊपर और कितना नीचे जा सकता है जिसे High IV और Low IV से दर्शाया जाता है। इसलिए ऑप्शन चैन में IV का उपयोग कर इस बात का भी पता लगाया जा सकता है की अभी ऑप्शन के प्रीमियम महंगे है या सस्ते।
High IV: हाई इम्प्लाइड वोलैटिलिटी से मतलब है की बाज़ार अपने करंट प्राइस से कितना ऊपर जा सकता है। यानी की अगर करेंट मार्केट प्राइस अभी 100 रूपये है और हाई इम्प्लाइड वोलैटिलिटी 5 रुपये है तो अगर बाज़ार ऊपर की तरफ जाएगा तो 100+5 = 105 तक जा सकता है।
जिस स्ट्राइक प्राइस की इम्प्लाइड वोलैटिलिटी हाई होती है उसके प्रीमियम हाई होते है और उसके प्रीमियम और ज्यादा हाई होने की संभावना कम ही होती है, यहाँ सेलर यानी की ऑप्शन राइटर मोके का फायदा उठाकर ऑप्शन को राईट करते है और जब प्रीमियम गिरता है तो वो मोटा मुनाफा कमाते है।
Low IV: लो इम्प्लाइड वोलैटिलिटी से मतलब है की बाज़ार अपने करंट प्राइस से कितना नीचे जा सकता है।
यानी की अगर करेंट मार्केट प्राइस अभी 100 रूपये है और लो इम्प्लाइड वोलैटिलिटी 7 रुपये है तो अगर बाज़ार नीचे (बियरिश) की तरफ जाएगा तो 100-7 = 93 रुपये तक जा सकता है।
लो इम्प्लाइड वोलैटिलिटी सेलर्स से ज्यादा बायर्स को फायदा पहुचाती है, क्योंकि यहाँ प्रीमियम सस्ते होते है जिन्हें बायर्स पसंद करते है और जैसे-जैसे इम्प्लाइड वोलैटिलिटी बढ़ेगी उसके साथ-साथ प्रीमियम भी बढेगा तो बायर्स को फायदा होगा।
इम्प्लाइड वोलैटिलिटी को कैसे इस्तेमाल किया जाता है।
इम्प्लाइड वोलैटिलिटी एक मैथमेटिकल फोर्मुला (सूत्र) की मदद से निकाली जाती है। ऑप्शन चैन में IV का उपयोग करके ट्रेडर इन तीन चीजों का पता लगा सकता है :
- ऑप्शन के भाव को निर्धारित करने में मदद करता है।
- अंडरलायिंग एसेट के भाव के ऊपर नीचे की और मूव करने की रेंज बताता है।
- डायरेक्शनल जोखिम बताता है।
आजकल इम्प्लाइड वोलैटिलिटी हर प्लेटफार्म या सॉफ्टवेयर में खुदबखुद दी होती है। जैसे की NSE की ऑप्शन चैन में दी होती है।
एक ऑप्शन सेलर के नजरिये से देखा जाए तो वो यही तय करके ऑप्शन को सेल करता है की एक्सपायरी आने पर उसके ऑप्शन में कोई भी प्रीमियम नहीं बचेगा यानी की वो OTM (Out The Money) होगा जो की ITM (in The Money) नहीं हो पाएगा और जीरो हो जाएगा और उसका सारा प्रीमियम ऑप्शन सेलर को मिल जाएगा।
एक ऑप्शन सेलर का प्रॉफिट ऑप्शन बायर के द्वारा भुगतान किया गया प्रीमियम ही तो होता है। एक्सपायरी आने पर अगर ऑप्शन बायर का प्रीमियम ITM (इन द मनी) ना हुआ तो उसकी वैल्यू अपने आप जीरो हो जाएगी और वो प्रीमियम ऑप्शन सेलर का हो जाएगा।
हालांकि ऑप्शन के भाव को कम या ज्यादा होने में ऑप्शन ग्रीक जैसे की वेगा, थीटा, गामा और रो भी अपनी भूमिका निभाते है।
जिस स्टॉक या इंडेक्स की वोलैटिलिटी लो होती है उन स्टॉक्स के प्रीमियम सस्ते होते है और जिनकी वोलैटिलिटी ज्यादा होती है उनके प्रीमियम महंगे होते है।
निष्कर्ष।
ऑप्शन चैन में इम्प्लाइड वोलैटिलिटी के बारे में जाना की बाज़ार के उतार और चढाव में इसका कितना और किस प्रकार से योगदान है और ये ऑप्शन के प्रीमियम पर कितना असर डालती है।
ऑप्शन ट्रेडिंग में IV के साथ साथ कई अन्य जरूरी चीजें भी होती है जिनके बारे में एक ट्रेडर को जानना चाहिए ताकि वो ऑप्शन ट्रेडिंग (Option Trading Basics in Hindi) को अच्छे से समझ सके और ट्रेडिंग में आने वाले मोकों को समझकर उनसे मुनाफा निकाल सके।
IV के अलावा लॉन्ग बिल्डउप, शोर्ट बिल्डउप, शोर्ट कवरिंग जैसी चीजों के बारे में भी आपको पता होना चाहिए, इनकी मदद से भी बाज़ार में आने वाले उतार चढ़ाव का पता चलता है।
ऑप्शन चैन के फंडामेंटल डाटा और टेक्नीकल अनालिसिस को मिलाकर ट्रेड के लिए निर्णय लेने में सुगमता होती है। और ट्रेड के गलत होने का जोखिम कम होता है।
ऑप्शन ट्रेडिंग में टेक्नीकल अनालिसिस का और ऑप्शन चैन जैसी टूल्स का खूब इस्तेमाल किया जाता है, एक ट्रेडर टेक्निकल एनालिसिस को अच्छे से सीखकर अच्छा मुनाफा कमा सकता है।
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