शेयर मार्केट के अन्य लेख
आपने “बुल मार्केट” के बारे में अक्सर अखबार या TV में सुना होगा। ऐसा माना जाता है की शेयर मार्केट बुल और बेयर की तरह चलती है।
लेकिन, ये बुल और बेयर क्या है?
ये टर्म अपने आप में ही परिभाषित है जैसे बुल यानी बैल और बेयर का मतलब भालू होता है।
अब आपके मन में ये सवाल आया होगा कि आखिरकार इन दो जानवरों का शेयर मार्केट में क्या काम है।
अपने पाठकों को मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ, इनका नाम एक सिंबल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अब आपने बैल को लड़ते तो जरुर देखा होगा, लेकिन क्या आपने उनके अटैक करने की शैली पर ध्यान दिया है?
आपको पता होगा की बैल एक आक्रमक जानवर है और हमेशा सींग नीचे से ऊपर की तरफ उछाल कर वार करता है।
इसी तरह बेयर यानी भालू हमेशा अपने शिकार को पंजे के सहारे ऊपर से नीचे की तरफ गिराकर वार करता है।
ठीक, इसी तरह जब शेयर मार्केट में तेजी चल रही है या कहें जब बाजार में खरीददार अधिक खरीददारी करते है तो मार्केट बढ़ने लगता है और स्टॉक के भाव ऊपर जाने लगता है।
इस स्थिति को ही बुलिश मार्केट कहा जाता है।
और, जब बाजार में गिरावट हो रही है यानी मार्केट में बिकवाली ज्यादा होती है तो उसे बेयर मार्केट कहते है। ऐसी स्थिति को बेयरिश मार्केट कहते है।
अब तक आपको बुल और बेयर मार्केट के बीच अंतर को समझ गए होंगे।
लेकिन, यहाँ हम केवल बुल मार्केट के बारे में बात करेंगे। इस लेख में हम बुल मार्केट के सभी पहलुओं के बारे में बात करेंगे।
इसके अलावा बुल मार्केट के कुछ रोचक फैक्ट्स, आकड़े, इसके उदाहरण को समझेंगे और पता लगायेंगे की ये निवेश करने के लिए अच्छा है या नहीं।
Bull Market Meaning in Hindi
बुल मार्केट का अर्थ बहुत आसान और खुद में ही परिभाषित है। जैसा की ऊपर बताया गया है, बुल मार्केट को एक सिंबल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
अगर बुल मार्केट को आसान शब्दों में समझे तो मार्केट में तेजी के माहौल को दर्शाने के लिए बुलिश मार्केट टर्म का इस्तेमाल किया जाता है।
स्टॉक मार्केट में दो तरह के निवेशक होते है। ऐसे लोग जो यह अनुमान लगाते है की मार्केट में स्टॉक का भाव ऊपर जाएगा। इस अनुमान के भरोसे वो स्टॉक खरीदते है और जब मार्केट ऊपर जाता है तो उसे बेचकर लाभ कमाते है।
तकनीकी रूप से, स्टॉक मार्केट में अगर निरंतर रूप से एक विशेष समय अवधि में शेयर के भाव बढ़ने लग जाए तो इसे “बुल मार्केट” कहा जाता है।
यही वह समय होता है जब देश में रोजगार का स्तर बढ़ रहा होता है और इसके साथ ही जीडीपी भी बढ़ती है।
कुल मिलाकर, जब देश का विकास दर में वृद्धि होती है तो निवेशकों के मन भी एक एक विश्वास जगता है की स्टॉक मार्केट में भी तेजी आएगी।
कई निवेशक इसी सोच के साथ शेयर खरीदते है और लाभदायक रिटर्न की उम्मीद करते है।
जॉन टेम्पलेटोन के अनुसार, बुल-बाजार निराशावाद पर पैदा होते हैं, संदेह पर बढ़ते हैं, आशावाद पर परिपक्व होते हैं और उत्साह पर मर जाते हैं।
बुल मार्केट = जीडीपी ↑ एम्प्लॉयमेंट ↑ स्टॉक = समग्र वृद्धि
आम तौर पर, इस चरण में शेयर खरीदने वाले निवेशकों को “बुल” कहा जाता है। आमतौर पर, बुल मार्केट एक महीने या दो महीने या साल की तरह एक निश्चित अवधि के लिए रहता है।
हालाँकि, शेयर बाजार में बुलिश स्थिति का पता लगाना मुश्किल है, लेकिन कुछ पहलुओं पर ध्यान दिया जा सकता है जैसे:
- क्या देश की जीडीपी बढ़ रही है?
- क्या बेरोजगारी कम है?
- क्या स्टॉक और शेयरों की कीमतें बढ़ रही हैं?
- अगर उपरोक्त सही जवाब हाँ है, तो फिर यह स्थिति कब तक होनी चाहिए?
वित्तीय क्षेत्र में, बुल मार्केट शब्द आमतौर पर निवेशकों द्वारा किसी देश की आर्थिक स्थिति को प्रदर्शित करने के लिए चुना जाता है जो तेजी से बढ़ रहा है।
आसिफ हिरानी (ट्रेडबल्स सिक्योरिटीज के निदेशक) के अनुसार, “भारत में किसी भी बुल मार्केट के लिए बैंकिंग और फाइनेंशियल सेक्टर मुख्य फैक्टर होते है उसके बाद मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर आते हैं, जो आमतौर पर हाई मोमेंटम के दौरान भाग लेना शुरू करता है।”
बुल मार्केट के उदाहरण
बुल मार्केट के कुछ उदाहरण हैं जो आपको और आसानी से समझने में मदद करेंगे।
जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, बुल मार्केट को तब देखा जा सकता है जब देश की जीडीपी अधिक है, बेरोजगारी कम है और स्टॉक और शेयरों की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं।
इनके अलावा, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में लेटेस्ट इनोवेशन और नई और मजबूत कंपनियों बाजार में कदम रखा है जो लोगों को निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, ये फैक्टर भी एक बुल मार्केट की स्थिति बनाते हैं।
भारत में पिछले पांच बुल मार्केट दलाल स्ट्रीट पर थे, जिसमें मुख्य रूप से इंडस्ट्रियल, बैंकिंग और मेटल सेक्टर शामिल हैं।
आइये देखते हैं कि क्या फिर से यही सेक्टर केंद्र बिंदु में रहते हैं?
वर्ष 2000 में डॉटकॉम बस्ट के दौरान सबसे अधिक प्रोडक्टिव बुल मार्केट स्थिति उत्पन्न हुआ, जब कई फर्मों ने निवेशकों और ट्रेडर्स को शेयर बाजार में निवेश करने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद 10 वर्षों के लिए बुल मार्केट की स्थिति को बनाए रखा।
इसके अलावा, 2003 से 2008 के बीच भारत का बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) सूचकांक 2900 अंक से बढ़कर 21000 अंक पर पहुंच गया, जिससे बुल मार्केट की स्थिति बन गई।
जब भारतीय शेयर बाजार में 2011 से 2015 के बीच क्रैश हुआ और सेंसेक्स में 98 प्रतिशत की वृद्धि देखि गयी, तब भी बुल मार्केट की स्थिति बानी थी।
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सबसे हालिया और सबसे लंबा बुल मार्केट की स्थिति अमेरिकी स्टॉक में हुई जहां 11 साल (2009 से 12 फरवरी 2020) के बाद डाउ जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज 6,594.44 से गिरकर 348% की वापसी के साथ 29,551.42 पर आ गया।
आश्चर्यजनक रूप से, अमेरिकी स्टॉक मार्केट को वर्ष 1987 से 2000 के दौरान स्टॉक की कीमतों में 582% की तेजी से और नाटकीय रूप से वृद्धि हुई।
आप बुल और बेयरिश से सम्बंधित प्रमुख घटनाओ के बारे में इस आर्टिकल सेंसेक्स Historical Data को पढ़कर और अधिक गहराई से जानकरी पा सकते है
Bull Market Images
ऊपर दिए इमेज से बुल मार्केट की स्थिति और स्पष्ट हो जाता है, इसके माध्यम से आप बुल मार्केट की प्रक्रिया और टर्म को और आसानी से समझ सकते है।
बुल मार्केट इंडिकेटर
शेयर बाजार में एक निवेशक या ट्रेडर के रूप में, आपको स्टॉक और शेयर खरीदने या बेचने से पहले बुल मार्केट की स्थिति का अनुमान लगाना बहुत महत्वपूर्ण है।
जब भी ऐसा होता है या होने वाला होता है, तो आपको उसके बारे में पहले से पता होना चाहिए अन्यथा आप मुनाफा नहीं कमाएंगे।
हालाँकि, कभी भी स्टॉक में शॉर्ट-टर्म उतार-चढ़ाव को देखकर बुल मार्केट का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। यह आपको आर्थिक रूप से जोखिम में डाल सकता है, क्योंकि बुलिश स्थित एक निश्चित समय के लिए रहती है।
कुछ प्रमुख बुल मार्केट इंडिकेटर निम्नानुसार हैं-
- देश की जीडीपी धीरे-धीरे बढ़ रही है।
- पिछले वर्षों की तुलना में बेरोजगारी कम हो रही है।
- स्टॉक, शेयर और सूचकांकों की कीमत में तेजी से वृद्धि
- शेयरों में मांग तेजी से बढ़ रही है।
- स्टॉक खरीदने वाले निवेशकों की संख्या में वृद्धि
- शेयरों की बिक्री सीमित हो जाती है
हमेशा याद रखें कि थोड़ी देर के बाद स्टॉक और शेयर ऊपर आते हैं और नीचे जाते हैं। बस आपको उपरोक्त इंडिकेटर पर ध्यानपूर्वक ध्यान देकर “UP” स्थिति की भविष्यवाणी करने की आवश्यकता है।
बुल मार्केट ट्रेडिंग की रणनीति
जो निवेशक एनएसई और बीएसई द्वारा सूचीबद्ध ट्रेडिंग और निवेश सेगमेंट से अधिकतम लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, तो उन्हें जल्द से जल्द स्टॉक खरीदकर बढ़ती कीमतों का लाभ उठाना चाहिए।
इसके साथ ही, इस स्टॉक या शेयर को सही समय में बेचना भी महत्वपूर्ण है। हालांकि, “खरीद” और “बिक्री” समय का निर्धारण करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि ज्यादातर समय में कीमतें उतार-चढ़ाव करती हैं।
नीचे हम विभिन्न बुल मार्केट ट्रेडिंग रणनीतियों को समझेंगे जो एक निवेशक को प्रभावी ढंग से पालन करके नुकसान को कम करने में मदद करेंगे:
- खरीदें और होल्ड करें – खरीदें और होल्ड करने की दृष्टिकोण किसी निवेशक को किसी विशेष समय पर एक निश्चित मात्रा में स्टॉक या शेयर खरीदने की अनुमति देता है, जब वे असाधारण रूप से कम कीमत पर उपलब्ध होते हैं और निवेशक को उम्मीद होता है कि आने वाले समय में कीमतें बढ़ेंगी।
इस दृष्टिकोण को और अधिक सफल बनाने के लिए, अपने पैसे लगाने से पहले उस विशेष ट्रेडिंग और निवेश खंड के पिछले महीनों या वर्षों के आंकड़ों का पालन करने की अत्यधिक अनुशंसा की जाती है।
- स्विंग ट्रेडिंग को फॉलो करे – बुल मार्केट के दौरान या उससे पहले बड़े पैमाने पर कमाई का एक अन्य तरीका स्विंग ट्रेडिंग पैटर्न का पालन करना है। यह एक बुल मार्केट को भुनाने की सबसे उपयोगी रणनीतियों में से एक है।
इस रणनीति के माध्यम से, एक निवेशक शॉर्ट टर्म या लॉन्ग टर्म लाभ के लिए स्टॉक या शेयरों को खरीदने और बेचने में एक सक्रिय भूमिका निभाता है। इस रणनीति का उपयोग निश्चित समय के लिए किया जाता है जैसे दिन या सप्ताह।
एक निवेशक कुछ दिनों के लिए कारोबार करके शेयरों से अधिकतम लाभ प्राप्त करने का प्रयास करता है क्योंकि परिवर्तन एक बड़े बुल मार्केट की स्थितियों के अंदर होता है।
- अतिरिक्त खरीदें और लंबे समय तक होल्ड की रणनीति – अतिरिक्त खरीदें और लंबे समय तक होल्ड करने की रणनीति ऊपर बताये ख़रीदे और होल्ड करने के एप्रोच से काफी अलग है, क्योंकि इसमें अतिरिक्त जोखिम शामिल होती है।
- बुल मार्केट ट्रेडिंग रणनीतियों में से एक को अपनाते हुए, एक निवेशक नियमित रूप से एक विशेष ट्रेडिंग सेगमेंट में एक शेयर खरीद लेगा और लंबी अवधि के लिए अपने खाते में इसे जोड़कर रखेगा।
- जब शेयर की कीमत अपनी पूर्व-निर्धारित राशि से बढ़ जाती है, तो निवेशक या ट्रेडर अपने डीमैट खाते (Demat account in Hindi) में लगातार शेयरों की एक अतिरिक्त निश्चित राशि खरीदेंगे।
Bullish Candlestick Pattern in Hindi
कुछ बुल मार्केट कैंडलस्टिक पैटर्न (candlestick patterns in hindi) हैं जो स्टॉक के तकनीकी विश्लेषण के लिए व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले एक महत्वपूर्ण फाइनेंशियल टूल हैं। इन पैटर्न को समझने से आपको बुल मार्केट के बारे में और स्पष्टता मिलेगी।
स्टॉक मार्केट विश्लेषण सीखने के लिए आप विभिन्न कोर्सेज में दाखिला ले सकते हैं जो आपको स्टॉक के तकनीकी विश्लेषण में स्पष्ट अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
बुल मार्केट कैंडलस्टिक पैटर्न में निम्नलिखित संरचना शामिल है-
- बॉडी (Body)
- हेड (Head)
- टेल (Tail)
- बॉडी में कैंडलस्टिक पैटर्न का मध्य भाग शामिल है जो ओपनिंग और क्लोजिंग अमाउंट को दर्शाता है। क्लोजिंग हमेशा खुलने वाले भाग के ऊपर होता है, जो बॉडी के बहुत नीचे होता है।
- बुल मार्केट कैंडलस्टिक पैटर्न में हेड को अपर शैडो के रूप में भी जाना जाता है जो क्लोजिंग अमाउंट को हाई वैल्यू से जोड़ता है।
- टेल बुल मार्केट कैंडलस्टिक पैटर्न में बहुत नीचे का हिस्सा है जो ओपनिंग वैल्यू को कम कीमत से जोड़ता है।
विभिन्न बुल मार्केट कैंडलस्टिक पैटर्न (candlestick pattern in hindi) है जो आपको सही संकेत देकर मार्केट में मुनाफा कमाने का अवसर प्रदान करते है।
इनमे से कुछ पैटर्न निम्नलिखित है:
- बुलिश इनगोल्फिंग पैटर्न
- 3 वाइट सोल्जर्स (three white soldiers candlestick pattern in hindi)
- हैमर पैटर्न
- बुलिश हेरामि पैटर्न
बुल मार्केट में कहाँ निवेश करें?
बुल मार्केट की शुरुआत या उसके दौरान, एक निवेशक को उन क्षेत्रों को ध्यान से देखना चाहिए जहां वह अधिक मुनाफा कमाने के लिए निवेश कर सकता है।
इसे और अधिक स्पष्ट और सटीक रूप से समझने के लिए, हमें निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं को समझना होगा, जिससे पता चलेगा कि बुल मार्केट में कहां निवेश करना है:
- बुल मार्केट के दौरान हमेशा ऐसी कंपनी के शेयर या शेयर खरीदें जो एक विशिष्ट अवधि के लिए ऊपर की ओर बढ़ रहे हों। कीमत के प्रवाह (प्राइस फ्लो) को जानने के लिए कंपनी के पिछले रिकॉर्ड की जांच करें।
- अच्छी बिक्री और कमाई वाली कंपनी शेयर बाजार में अधिक कमाई करने की संभावना बनाती है। इसकी पिछली कमाई की रिपोर्ट की तुलना करने से आपको एक नज़र में पता चल जाएगा कि यह लाभदायक होगा या नहीं।
- यदि यह अच्छी कमाई कर रहा है और सार्वजनिक मांग उनके उत्पाद के लिए बढ़ रही है, तो यह कंपनी बुल मार्केट में निवेश करने के लिए एक बेहतर विकल्प है।
- उन शेयरों में निवेश करें जो किसी विशेष अवधि में दूसरों की तुलना में अधिक बेहतर विकल्प हैं। उस विशेष ट्रेडिंग और निवेश सेगमेंट के शेयरों को खरीदने की कोशिश करें और आंकड़ों की जांच करते रहें और एक रिपोर्ट बनाएं।
- बेहतर इंडस्ट्री का चयन करने से आपको वित्तीय रूप में भी फायदा होगा। ऐसे क्षेत्रोंका चुनाव करें जो निरंतर विकास कर रही हैं जैसे ऑटोमोबाइल, टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री, हाउसिंग प्रोडक्ट और औद्योगिक उपकरण आदि।
बुल मार्केट क्रैश
भारतीय शेयर बाजार में कई बड़े क्रैश हुए है जिससे शेयर मार्केट हिल गया। भारत में लगभग 4 प्रमुख क्रैश हुई हैं और आमतौर पर क्रैश के तीन मुख्य कारण हैं:
- अप्रत्याशित आर्थिक स्थिति
- शोकपूर्ण घटना
- अचानक संकट
इसके अलावा, बुल मार्केट के दौरान कुछ क्रैश हुईं जब यह अनिश्चित स्तर तक पहुँच गया और कीमतें तेजी से बढ़ने लगी।
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शेयर बाजार में हुआ बुल मार्केट क्रैश:
- स्टॉक मार्केट क्रैश 1929 (जिसे वॉल स्ट्रीट क्रैश या Great Crash भी कहा जाता है) इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा अमेरिकी क्रैश था।
- यह ग्रेट डिप्रेशन के ठीक पहले लंदन के स्टॉक एक्सचेंज क्रैश के बाद हुआ था।
- क्रैश के शुरूआती दिनों में, बाजार पूरी तरह से प्रभावित और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा।
- स्टॉक मार्केट ने बुल मार्केट का अनुभव किया क्योंकि वॉल्यूम और मांग में वृद्धि के कारण कीमतों में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई।
- बाद में, अचानक से कीमतों में जबरदस्त गिरावट दर्ज हुई जिसके कारण अमेरिका के इतिहास में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ।
क्या बुल मार्केट अच्छा है?
बाजार में बुलिश स्थिति तब आती है जब शेयरों की सप्लाई की तुलना में डिमांड ज्यादा होती है। इसके परिणामस्वरूप, शेयर की कीमतों में वृद्धि होती है।
जब मार्केट बेयरिश हो तो एक निवेशक ज्यादा शेयर खरीदता है, क्योंकि शेयर सस्ते भाव में उपलब्ध होते हैं और बुलिश मार्केट के दौरान अपने शेयरों को बेचते हैं क्योंकि इस समय के दौरान अधिक लोग खरीदना चाहते हैं।
ऐसे में आप अपने शेयरों को उच्च मूल्य पर बेच सकते हैं और लाभ कमा सकते हैं।
इसलिए, बुल मार्केट एक अच्छा विकल्प है और अधिकांश निवेशकों द्वारा पसंद किया जाता है। आमतौर पर, बुल मार्केट की स्थिति में निवेशकों और ट्रेडर्स को लॉन्ग टर्म में अच्छे रिटर्न देता है।
बुल मार्केट के दौरान, कोई भी नुकसान मामूली और अस्थायी होता है और इसके आगे, एक निवेशक बुल मार्केट में ट्रेड करते समय ऊपर बताए रणनीतियों का विकल्प चुन सकता है।
कभी-कभी बुल मार्केट स्वाभाविक रूप से होता है यानी जब जीडीपी और उत्पाद की मांग बढ़ती है। हालाँकि, कुछ समय ऐसे होते हैं जब कोई क्रैश होती है और परिणामस्वरूप बुल मार्केट बन जाता है।
निष्कर्ष
जैसा कि हमने निष्कर्ष निकाला है कि भारत में बुल मार्केट की अवधारणा पुरानी है क्योंकि यह शब्द बताता है कि जब कीमत बढ़ती है और शेयर खरीदने को प्रोत्साहित करते हैं तो उसे बुल मार्केट कहा जाता है। यह सब स्टॉक के साथ तालमेल के बारे में है।
बुल मार्केट के लिए कुछ रणनीतियों है जैसे बाय और होल्ड एप्रोच, स्विंग ट्रेडिंग रणनीति, अतिरिक्त खरीदें और लंबे समय तक होल्ड की रणनीति और प्रसिद्ध कैंडलस्टिक पैटर्न हैं।
बुल मार्केट की स्थिति पूरे वर्ष के दौरान कभी कभार आता है। इसलिए सही समय का इंतज़ार करे और स्टॉक ख़रीदे।
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