इंट्राडे ट्रेडिंग जो की ट्रेडर को अच्छा मुनाफा दे सकती है, पर एक गलत शेयर में पोजीशन लेना नुकसान का कारण भी बन सकती है और इसलिए सबसे ज़रूरी ये जानना है कि इंट्राडे के लिए स्टॉक कैसे चुने|
वैसे तो शेयर मार्केट में हज़ारो कम्पनीज है लेकिन उनमे से कुछ ही कम्पनीज के शेयर में इंट्राडे ट्रेडिंग कर मुनाफा कमाया जा सकता है तो आइये जाने ऐसे कौनसे कारक है जो इंट्राडे के लिए शेयर चुनने के लिए महत्वपूर्ण है।
इंट्राडे ट्रेडिंग में शेयर का चुनाव करने के लिए कुछ पहलुओं को ध्यान में रखना होता है जैसे की :
- लिक्विडिटी (तरलता)
- वोलैटिलिटी (अस्थिरता)
- ट्रेंड
- मोमेंटम
किसी भी शेयर को इंट्राडे ट्रेडिंग में खरीदने से पहले इन चारों पहलुओं पर सही होना जरूरी है, आइये इन चारो पहलूओं को विस्तार में समझते है:
Liquidity Analysis for Intraday Hindi
इंट्राडे ट्रेडिंग (Intraday Trading Meaning in Hindi) यानी की आज ही ट्रेड ली और आज ही मार्केट के बंद होने से पहले अपनी ट्रेड को क्लोज कर दिया।
अब इंट्राडे में लिक्विडिटी की जरूरत कुछ इस तरह है की ट्रेड लेने के लिए शेयर की पर्याप्त क्वांटिटी होना जरूरी होता है|अगर उसमें ज्यादा क्वांटिटी में शेयर ट्रेड हो रहे होंगे तभी तो ट्रेडर सोदे में ज़्यादा मुनाफा कमा पायेगा।
Liquidity की जानकारी वॉल्यूम (What is Volume in Share Market in Hindi) से ली जाती है जो ये संकेत देता है कि कितने ट्रेडर मार्केट वैल्यू पर शेयर को बेचने और खरीदने में इच्छुक है।
जितने ज़्यादा ट्रेडर की वॉल्यूम उतना मुनाफा कमाने का अवसर।
उदाहरण के लिए, मान लो की अगर आपने किसी शेयर को 1000 रुपये के भाव पर खरीद लिया लेकिन उसमे लिक्विडिटी कम है तो ऐसे में स्क्वायर ऑफ करते समय आपको कम सेलर होने की वजह से सही सौदा नहीं मिलेगा और कई बार नुक्सान के साथ आपको अपनी पोजीशन से बाहर निकलना होगा।
इसके साथ वॉल्यूम की जानकारी से हम ट्रेंड को भी जान सकते है:
वॉल्यूम | प्राइस | ट्रेंड |
Increases | Increases | Bullish |
Increases | Decreases | Bearish |
Decreases | Increases | Bullish Trend will end soon |
Decreases | Decreases | Bearish Trend will end soon |
Volatility Analysis for Intraday in Hindi
इंट्राडे के लिए बेस्ट स्टॉक चुनने के लिए लिक्विडिटी के बाद वोलैटिलिटी पर सबसे ज्यादा ध्यान देना होता है। वोलैटिलिटी यानी की अस्थिरता, अगर किसी शेयर में अस्थिरता रहेगी तभी तो वो दिन के दौरान ऊपर नीचे जाएगा और ट्रेडर उस ऊपर नीचे जाने की स्थिति में सोदा लेकर मुनाफा बना पाएगा।
शेयर की वोलैटिलिटी को उसके ऊपर नीचे होने की दशा में मापा जाता है, जितनी अच्छी वोलैटिलिटी उतने अच्छे सोदा लेने के मौके।
आइये इसे एक उदाहरण से समझते है।
मान लो की किसी शेयर की कीमत ₹100 चल रही है और उसकी volatility 1% है इसका मतलब वह ज़्यादा से ज़्यादा 101 तक ऊपर जा सकता है और 99 की वैल्यू तक नीचे गिर सकता है।
ऐसे में अगर आपने सपोर्ट पर इस शेयर को खरीद भी लिया तो ज़्यादा मुनाफा नहीं कमा पाओगे।
वही अगर शेयर में 4% की वोलैटिलिटी हो तो वह मुनाफा कमाने का अवसर भी है लेकिन उसके साथ कई तरह के जोखिम भी है।
मार्केट में वोलैटिलिटी की जानकारी के लिए बोलिंजर बैंड इंडिकेटर (bollinger band indicator in hindi) का उपयोग कर सकते है। यह शेयर मार्किट इंडिकेटर (Share Market Indicator in Hindi) की सूची में वोलैटिलिटी इंडिकेटर में विभाजित है |
Trend Analysis for Intraday in Hindi
रेंज बाउंड मार्किट या कंसोलिडेशन मार्किट: इसमें भाव एक छोटी रेंज में ऊपर निचे होता रहता है और ट्रेडर ज्यादातर इसके झांसे में फंसकर अपनी पूंजी गँवा देता है।
ऊपर दर्शाए चार्ट में देखिये की एक रेंज बनी हुई है और भाव बार बार उस रेंज में ऊपर निचे जा रहा है, अब नए और अनुभवहीन ट्रेडर इस रेंज में सौदा तो ले लेते है और उनका टारगेट नहीं आ पाता।
कारण होता है की शेयर ट्रेंड में नहीं होता और जब भी वो सौदा लेता है तो उसको आगे ग्रोथ मिलने की बजाए रेंज का ऊपरी बैंड मिल जाता है जो की शेयर को वापस निचे धकेल देता है।
जब तक बाज़ार इस रेंज से निकलकर ट्रेंड नहीं पकड़ लेता तब तक ट्रेड करना जानबूझकर जोखिम उठाना कहलाएगा।
ट्रेंड के सहारे ट्रेडिंग: इंट्राडे ट्रेडिंग में ट्रेंड की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है। ट्रेंड से ट्रेडर ये तय कर पाता है की खरीददारी करनी है या बिकवाली करनी है। इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए स्टॉक का चयन करने के लिए ये एक जरूरी पहलु है |
ऊपर दर्शाये चार्ट में एक घंटे का टाइम फ्रेम और उसमें तेजी यानी की बुलिश मार्केट दिखाई दे रही है। इसमें भाव मूविंग एवरेज के साथ साथ मूमेंटम करता हुआ दिखाई दे रहा है। अब देखने वाली बात ये है की एक घंटा जो की एक बड़ा टाइमफ्रेम है तो छोटे टाइम फ्रेम में मूमेंटम के आधार पर ट्रेड करना आसान होता है।
दूसरी तरफ 15 मिनट के टाइमफ्रेम वाले चार्ट में देखा जा सकता है की एक घंटे की मूविंग एवरेज (Moving Average in Hindi) पर जब भाव आता है तो वहां से दोबारा मूमेंटम के साथ ऊपर चला जाता है, एक ट्रेडर के लिए इस तरह ट्रेंड के साथ ट्रेड करना आसान होता है और मुनाफा निकालना भी आसान होता है।
क्योंकि ज्यादातर टाइम शेयर का भाव अपने ट्रेंड के अनुरूप ही जाता है तो अपट्रेंड में बुलिश सौदा लेने की बजाए बियरीश सौदा लेना अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा।
ट्रेंड के साथ चलने में गलत होने की संभावना कम हो जाएगी।
इंट्राडे में टेक्निकल अनालिसिस के आधार पर शेयर की खरीददारी।
मूमेंटम यानी की तेजी की स्पीड यानी गति, किसी भी चीज की गति को मूमेंटम के सहारे समझा जा सकता है। जैसे की गाडी जब चलती हुई धीरे धीरे और तेज गति के साथ चलने लगती है।
तो उसे कहा जाएगा की गाडी ने मूमेंटम पकड़ ली है। बिलकुल उसी प्रकार शेयर जब बुलिश ट्रेंड में चल रहा हो और जब वो बुलिश ट्रेंड में ही और तेज गति पकड़ ले तो उसे कहेंगे की शेयर ने मूमेंटम पकड़ ली है।
टेक्निकल अनालिसिस के सहारे उस मूमेंटम को समझा जा सकता है और ट्रेड भी किया जा सकता है।
Momentum Analysis for Intraday in Hindi
इंट्राडे ट्रेडिंग में टेक्निकल अनालिसिस का ही उपयोग होता है, क्योंकि इंट्राडे ट्रेडिंग की समय सीमा केवल एक ही दिन की होती है तो वो फंडामेंटल अनालिसिस (Fundamental Analysis in Hindi) या किसी अन्य प्रकार के अनालिसिस की मदद से कर पाना संभव नहीं होता।
हमने लिक्विडिटी (तरलता), वोलैटिलिटी (अस्थिरता) और ट्रेंड के बारे में समझ लिया, जब कोई शेयर इन तीनों चीजों के आधार पर सही हो और ट्रेड करने लायक हो तो अंतिम चरण बचता है टेक्निकल अनालिसिस, जो ट्रेडर को बताएगा की कहाँ पर सोदा लेना है और कहाँ पर बेचना है।
अब जो भी शेयर ट्रेडर के टेक्निकल अनालिसिस के आधार पर खरीदने लायक हो उन्हें खरीदा जा सकता है, इसके लिए कुछ कैंडलस्टिक पैटर्न (Candlestick Pattern in Hindi), चार्ट पैटर्न, इंडिकेटर और रणनीतियां है जिनकी मदद ली जा सकती है।
ट्रेडर को टेक्निकल अनालिसिस के जरिये इंट्राडे में अच्छी लिक्विडिटी, अच्छी खासी वोलैटिलिटी, और ट्रेडिंग शेयर को ही खरीदना चाहिए।
निष्कर्ष।
इस पोस्ट में आपने जाना की इंट्राडे के लिए स्टॉक कैसे चुने | आपको बता दें की इंट्राडे ट्रेड करना जितना मुश्किल है उतना ही आसान भी है बस फर्क है प्लानिंग करने और बिना प्लानिंग के ही इंट्राडे ट्रेडिंग करने की कोशिश करना।
अगर प्लानिंग के साथ इंट्राडे करेंगे तो आप पहले बड़े टाइमफ्रेम के सहारे ट्रेंडिंग स्टॉक्स को खोजेंगे उसके बाद उन खोजे हुए स्टॉक्स में टेक्निकल अनैलिसिस की मदद से सौदा बनाएँगे। ऐसा करने पर मुनाफा कमाने की संभावनाएं बढ़ जाएगी।
टेक्निकल अनालिसिस, ये शब्द जितना पुराना है उतना ही प्रभावशाली है। एक ट्रेडर को अच्छी तरह सोच विचार करने के उपरान्त सही पहलुओं के अनुरूप इंट्राडे में स्टॉक चुनने के बाद टेक्निकल अनालिसिस की मदद से शेयर को खरीदना चाहिए।
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