जब भी आप शेयर बाजार के बारे में सुनते है तो एक शब्द इक्विटी से ज़रूर अवगत होंगे, लेकिन क्या आपने जाना है कि इक्विटी का क्या अर्थ है? Equity meaning in hindi में इसके मतलब और विभिन्न प्रकार के बारे में विस्तार में जानेंगे।
इक्विटी का अर्थ?
चलिए शुरुआत एक उदाहरण से करते है, मान लेते है की आपका दोस्त अपनी ज़मीन का एक छोटा सा टुकड़ा बेचना चाहता है। ज़मीन अच्छी जगह पर है और भविष्य में उसकी कीमत बढ़ने के काफी उम्मीद है, ऐसे में आपने उस ज़मीन के टुकड़े को खरीदने का प्रस्ताव अपने दोस्त के आगे रखा।
पूरी ज़मीन की कीमत के अनुसार उस टुकड़े की कीमत की गणना 5,00,000 रुपये थी। आपने ये राशि अपने दोस्त को दी और वह टुकड़ा खरीद लिया।
अब इस पूरी प्रक्रिया में आपने वह ज़मीन का टुकड़ा भविष्य में ज़्यादा दामों में बेचने के लिए ख़रीदा है, यानी की आपने अपनी राशि से निवेश किया है जिसके बदले आपको वह ज़मीन प्राप्त हुई और साथ ही उस ज़मीन को असीमित अवधि तक रखने और आगे बेचने का मालिकाना हक़ प्राप्त हुआ।
अब इसे अगर स्टॉक मार्केट के साथ जोड़ा जाए तो वह ज़मीन का टुकड़ा कंपनी का शेयर के सामान हुआ और शेयर में निवेश करने पर प्राप्त हुआ मालिकाना हक़ प्राप्त करना इक्विटी हुआ।
आसान शब्दों में “इक्विटी मूल रूप से कंपनी में एक स्वामित्व यानी एक हिस्सेदारी को दर्शाता है !”
अब जिस तरह से एक ज़मीन और उसके टुकड़े की वैल्यू की गणना कर आपने वह ज़मीन खरीदी, उसी प्रकार जब कोई कंपनी शेयर मार्केट में लिस्ट होती है तो उस कंपनी की वर्तमान वैल्यू के आधार पर प्रति शेयर की गणना और इक्विटी का आकलन किया जाता है, जैसे की:
अगर किसी कंपनी ने 10000 शेयर लिस्ट किये और प्रत्येक शेयर की वैल्यू 500 रुपये है , तो यहाँ पर उस कंपनी की मार्केट इक्विटी वैल्यू 50,00,000 रुपये होगी।
इसकी वैल्यू कंपनी के आउटस्टैंडिंग शेयर (outstanding shares meaning in hindi) पर भी निर्भर करती है।
जैसे की अगर कोई कंपनी अपने आउटस्टैंडिंग शेयर को बढ़ा दे तो वह मौजूदा शेयरहोल्डर की इक्विटी को कम और वही आउटस्टैंडिंग शेयर कम होने पर इक्विटी की वैल्यू बढ़ जाती है।
शेयरहोल्डर इक्विटी कंपनी की नेट वर्थ से प्राप्त की जाती है, जिसकी गणना कंपनी के सभी ऋणों का भुगतान होने के बाद अविशिष्ट सम्पति (residual assets) के माध्यम से की जाती है।
इसके साथ कंपनी की प्रतिधारित कमाई (retained earnings) भी शेयरहोल्डर इक्विटी में शामिल होती है। प्रतिधारित कमाई शेयरहोल्डर को डिविडेंड के रूप में न देकर उसका उपयोग कंपनी की ग्रोथ के लिए किया जाता है, जिससे कंपनी के शेयर की वैल्यू बढ़ती है।
इसके साथ अन्य पैरामीटर जिसकी वजह से कंपनी के शेयर और शेयरहोल्डर इक्विटी की वैल्यू में बदलाव आता है वह निम्नलिखित है:
- निवेशकों की कंपनी की तरफ रुचि बढ़ना।
- कंपनी या सेक्टर को लेकर किसी तरह की कोई न्यूज़, जैसे की किसी कंपनी में किसी तरह का कोई विकास होने वाला है,तो उसका सीधा प्रभाव उस कंपनी के इक्विटी शेयर में देखने को मिलता है।
- सरकार की तरफ से किसी तरह की कोई घोषणा भी इक्विटी शेयर प्राइस को काफी हद तक बदलती है।
How to Calculate Equity in Hindi?
इक्विटी की गणना करने के लिए कंपनी के लायबिलिटी में से एसेट को घटाया जाता है। इसका फार्मूला निम्नलिखित है:
शेयरहोल्डर इक्विटी= कुल एसेट-कुल लायबिलिटी
Total asset और total liabilities की जानकारी आपको कंपनी की बैलेंस शीट में प्रदान की जाती है। उदाहरण के लिए यहाँ पर एक कंपनी की 2 साल के लाइबिलिटी की जानकारी दी गयी है:
इसी तरह से उन्ही 2 वर्षो की एसेट की जानकारी निम्नलिखित है:
अब अगर हमे वर्तमान समय की शेयरहोल्डर इक्विटी की गणना करनी हो तो उसके लिए एसेट से लायबिलिटी को घटाना होगा:
Shareholder’s Equity= (407,654-161,775) करोड़
= 245,879 करोड़
इसी तरह से पिछले दो साल की शेयरहोल्डर इक्विटी की गणना की जा सकती है जिससे कंपनी के फंडामेंटल का विश्लेषण किया जा सकता है। इक्विटी में आप अलग-अलग प्रोडक्ट्स जैसे की डिलीवरी, इंट्राडे आदि में ट्रेड कर सकते है, जिसका विवरण आगे दिया गया है।
1. डिलीवरी ट्रेडिंग क्या है?
स्टॉक एक्सचेंज के सेटलमेंट नियम के अनुसार, जब आप इक्विटी स्टॉक में निवेश करते है तो ख़रीदे हुए शेयर आपके डीमैट अकाउंट में T+1 दिनों में डिलीवर होते है। तो अगर आप इक्विटी स्टॉक्स मे पोजीशन एक दिन से ज़्यादा लेते है तो उसे इक्विटी डिलीवरी या डिलीवरी ट्रेडिंग कहा जाता है।
डिलीवरी ट्रेडिंग उन इक्विटी स्टॉक्स में करना लाभदायक होती है जो कंपनी या तो बड़ी हो या आने वाले महीनो या सालो में उससे ज़्यादा में आपको एक अच्छा रिटर्न देने के योग्य हो।
इस तरह की कंपनी में निवेश करने के लिए कंपनी के पुराने रिकॉर्ड और आने वाले प्लान की जानकारी प्राप्त करने के लिए कंपनी का मौलिक विश्लेषण ज़रूर करें।
हर एक निवेश के साथ जुड़ा होता है रिस्क, तो अगर रिस्क की बात करें तो वह आपके होल्डिंग अवधि पर निर्भर करता है, जैसे की:
- अगर आप 2 दिन से लेकर 1 महीने की अवधि के लिए डिलीवरी ट्रेडिंग करते है तो उसे स्विंग ट्रेडिंग कहा जाता है। इसमें मार्केट के मोमेंटम और वोलैटिलिटी के चलते पोजीशन ली जाती है और ये अन्य डिलीवरी ट्रेड की तुलना में ज़्यादा रिटर्न देती है। अब ज़्यादा रिटर्न है तो इसमें रिस्क भी ज़्यादा होता है।
- दूसरी प्रकार की डिलीवरी ट्रेडिंग में पोसिशनल ट्रेडिंग आती है जिसमे 1 महीने से ज़्यादा और 1 साल की अवधि के लिए शेयर को होल्ड किया जाता है। इसमें स्विंग के अनुसार कम रिस्क होता है।
- आखिर में आता यही लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट, जिसमे 1 साल से ज़्यादा होल्ड करने के उद्देश्य से कंपनी में निवेश किया जाता है। यह अन्य सेगमेंट की तुलना में कम जोखिमों से भरा है, क्योंकि आप मार्केट ट्रेंड, वोलैटिलिटी और अन्य रिलेटेड फैक्टर के अनुसार खरीदने या बेचने के निर्णय नहीं लेते हैं।
2. Intraday Trading in Hindi
अब बात करते है दूसरे ट्रेडिंग के प्रकार की जो ट्रेडर्स के बीच काफी प्रचिलित है, यहाँ पर अगर आप एक ही ट्रेडिंग सेशन में स्टॉक को खरीद और बेच रहे है तो वह इंट्राडे ट्रेडिंग होती है, अब यदि डे ट्रेड इक्विटी सेगमेंट में हो तो उसे इक्विटी इंट्राडे ट्रेडिंग बोला जाता है।
इस रूप में, ट्रेडर ट्रेड में एंटर करता है और कुछ घंटों, मिनटों और कभी-कभी कुछ सेकंड के अंदर एग्जिट कर सकता है।
अब जिस तरह से इक्विटी डिलीवरी के लिए मौलिक विश्लेषण करना ज़रूरी है, ठीक उसी तरह से इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए ट्रेडर्स को मार्केट ट्रेंड की काफी समझ होनी चाहिए। इसके साथ उन्हें सही स्टॉक का चयन और ट्रेड करने के लिए तकनीकी विश्लेषण (technical analysis in hindi) करना अनिवार्य होता है।
इस तरह के ट्रेडिंग में, छोटे से प्रॉफिट मार्जिन के लिए बड़ी मात्रा में ट्रेडर शामिल होते हैं, लेकिन अगर आपके पास ज़्यादा पैसा नहीं है तो उसके लिए स्टॉकब्रोकर आपको मार्जिन की सुविधा प्रदान करते है जिसके अंतर्गत आप किसी भी स्टॉक में इंट्राडे ट्रेडिंग करने के लिए अपने ब्रोकर से 5 गुना तक का मार्जिन प्राप्त कर ज़्यादा ट्रेडिंग कर मुनाफा कमा सकते है।
Equity Meaning in Hindi की जानकारी प्राप्त करने के बाद जानते है इक्विटी के प्रकार। इक्विटी को अलग-अलग आधार पर बांटा गया है, जैसे की:
- मार्केट कैप
- वैल्यूएशन
यहाँ पर सबसे पहले मार्केट कैप के आधार पर इक्विटी के प्रकार की जानकारी प्राप्त करते है।
मार्केट कैपिटलाइजेशन के प्रकार
मार्केट में बहुत सारी कंपनी लिस्टेड है, अब हर एक कंपनी एक निर्धारित इक्विटी शेयर लिस्ट करती है और हर एक शेयर की अपनी एक वैल्यू होती है, जिसके आधार पर हर कंपनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन की गणना कि जाती है।
Market Capitalization = Number of Equity Shares * Current Market Price
इस मार्केट कैप के आधार पर तीन तरह की कंपनी और उसके इक्विटी शेयर होते है:
1. Large Cap इक्विटी शेयर
जिन कंपनी का मार्केट कैप 20,000 करोड़ से अधिक होता है उसे लार्ज कैप कंपनी और उसके लिस्टेड शेयर को लार्ज कैप इक्विटी शेयर कहा जाता है।
भारत की जानी-मानी कंपनी जैसे की इन्फोसिस, SBI, HDFC लार्ज कैप इक्विटी शेयर का हिस्सा है।
इस तरह की कंपनी में निवेश करने का जोखिम कम होता है और इसलिए एक निवेशक ऐसी कंपनी में निवेश कर कम लेकिन एक स्टेबल रिटर्न की उम्मीद कर सकता है।
2. Mid Cap इक्विटी शेयर
मार्केट कैपिटलाइजेशन के आधार पर अगर किसी कंपनी का मार्केट कैप 5,000 Cr-20,000 Cr रुपये का है तो वह कमपनी के शेयर मिड-कैप मार्केट कैपिटलाइजेशन में आते है।
अब क्योंकि ये कंपनी लार्ज-कैप बनने के लिए निरंतर प्रयास करती है इसलिए इन कंपनी में निवेश कर आप मध्यम रिस्क और रिवॉर्ड की अपेक्षा कर सकते है।
3. Small Cap इक्विटी शेयर
5000 करोड़ से कम मार्केट कैप वाली कंपनी को स्माल कैप इक्विटी शेयर में रखा गया है, इस तरह की श्रेणी में ज़्यादातर स्टार्ट-अप कंपनी आती है जिन्होंने कम समय में एक प्रदर्शन दिखाया है।
अब क्योंकि ये कंपनी प्रगति और विकास के शुरूआती दौर में होती है इसलिए इन कंपनी में निवेश करना जोखिम भरा हो सकता है, लेकिन जब बात रिटर्न की आती है तो अगर आप एक सही कंपनी का चयन कर उसमे निवेश करते है तो ज़्यादा रिटर्न की अपेक्षा कर सकते है।
वैल्यू स्टॉक्स और ग्रोथ स्टॉक्स
कंपनी की वैल्यूएशन के आधार पर इक्विटी स्टॉक्स को दो भागो में बांटा गया है:
- वैल्यू स्टॉक्स
- ग्रोथ स्टॉक्स
1. Value Stocks in Hindi
वैल्यू स्टॉक्स उन कम्पनीज के शेयर है जो फ़ण्डामेंटली स्ट्रांग है लेकिन जिनका आंतरिक मूल्य कम है। ऐसे में इन कम्पनीज के शेयर्स कम दामों में उपलब्ध होते है जो एक निवेशक को कम जोखिमों के साथ ज़्यादा रिटर्न कमाने का अवसर प्रदान करते है।
ऐसे कम्पनीज एक P/E रेश्यो कम होता है लेकिन इन कम्पनीज का रेवेन्यु और प्रॉफिट निरंतर बढ़ता जाता है।
2. Growth Stocks in Hindi
ग्रोथ स्टॉक्स वह स्टॉक्स है जो मार्केट एवरेज से बेहतर परफॉर्म कर रहे है। सरल भाषा में बात की जाए तो ये उन कम्पनीज के शेयर है जो निरंतर मुनाफा बना स्टॉक मार्केट के एवरेज से ज़्यादा वैल्यू की है।
इस तरह के शेयर हाई रिटर्न प्रदान करते है लेकिन साथ ही ये काफी वोलेटाइल भी होते है जिसके चलते इनमे निवेश करने के कई तरह के जोखिम होते है।
इक्विटी के जोखिम
जब आप शेयर बाजार और विशेष रूप से इक्विटी सेगमेंट में निवेश करते हैं, तो विभिन्न प्रकार के जोखिम होते हैं। उन जोखिमों में से कुछ आपके द्वारा निवेश की गई कंपनियों की गतिशीलता के आसपास हो सकते हैं:
- आपके द्वारा निवेश किए गए स्टॉक की कीमत में गिरावट का जोखिम।
- जब आप नियमित लाभांश की उम्मीद करते हुए विशिष्ट शेयरों में निवेश करते हैं और कंपनी इसका भुगतान करना बंद कर देती है या इसका मूल्य कम कर देती है तो आपको आपके अपेक्षा से कम रिटर्न की प्राप्ति होती है।
- कंपनी में पाए जाने वाले किसी भी संभावित धोखाधड़ी के जोखिम का पर्दाफाश हो रहा है या बंद हो रहा है।
हालांकि, ऐसे विशिष्ट कारक हैं जिन पर ये इक्विटी जोखिम निर्भर करते हैं:
- बाजार की अस्थिरता
- उद्योग की प्रवृत्तियां
- वैश्विक कारक
- अंतर-उद्योग की गतिशीलता
- कंपनी प्रबंधन स्थिरता।
इक्विटी शेयर के लाभ
आप कमोडिटी,करेंसी, म्यूचुअल फंड जैसे अन्य निवेश वर्गों में निवेश करना चुन सकते हैं – फिर भी इक्विटी में निवेश करने के लिए आपको कुछ विशिष्ट लाभ मिलते हैं।
यहां सूचीबद्ध हैं:
- पिछले वर्षों में, इक्विटी अन्य निवेश वर्गों की तुलना में तुलनात्मक रूप से उच्च प्रतिशत रिटर्न प्रदान करने में सक्षम रही है।
- नियमित इक्विटी निवेश से आपको अपने इक्विटी पर अच्छा रिटर्न मिलता है। कुछ सूचीबद्ध कंपनियां अपने ग्राहकों को लाभांश भी प्रदान करती हैं, जो निवेशकों के लिए अतिरिक्त मौद्रिक मूल्य के रूप में कार्य करती हैं।
- लाॅंग-टर्म निवेश की तलाश करने वाले निवेशक रियल एस्टेट या अन्य संबंधित निवेश की तुलना में ब्लू-चिप इक्विटी स्टॉक में से कुछ पर निश्चित रूप से अधिक निर्भर हो सकते हैं।
- शाॅर्ट-टर्म त्वरित मुनाफे के लिए, ट्रेडर इंट्रा-डे ट्रेडिंग कर सकते हैं संभावित रूप से अपने निवेश पर दैनिक रिटर्न प्रापत कर सकते हैं।
इक्विटी में इन्वेस्ट कैसे करें?
इक्विटी शेयर की पूरी जानकारी प्राप्त करने के बाद अब आता है सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न कि इक्विटी में इन्वेस्ट कैसे करें?
तो इसके लिए एक निवेशक को सबसे पहले एक स्टॉकब्रोकर का चयन करना होता है जो ट्रेडिंग एप के माध्यम से आपको इक्विटी में निवेश करने का विकल्प प्रदान करता है।
ट्रेडिंग एप को इस्तेमाल और इक्विटी में इन्वेस्ट करने के लिए आपको एक डीमैट खाते के ज़रुरत होती है जो आप आसानी से कुछ चरणों में अपने चुने हुए स्टॉकब्रोकर के साथ ऑनलाइन खोल सकते है।
- डीमैट खाता खोलने के बाद, प्रदान किये गए क्रेडेंशियल (यूजर आईडी और पासवर्ड) से एप में लॉगिन करे और जिस भी कंपनी या स्टॉक में निवेश या ट्रेड करना चाहते है उसको चुने।
- अब इक्विटी में आपको अलग-अलग विकल्प दिए जाते है जैसे की आप ख़रीदे हुए स्टॉक को होल्ड करना चाहते है या इंट्राडे ट्रेडिंग करना चाहते है।
- अपने लक्ष्य और योजना के अनुसार आगे बढ़ने के लिए बाय/सेल बटन पर क्लिक करे।
- आपके सामने एक ट्रेडिंग विंडो ओपन होगी जहां पर आप पूरी जानकारी जैसे शेयर की मात्रा, प्राइस, आर्डर टाइप का विवरण देकर अपना आर्डर कन्फर्म कर सकते है।
न्यूनतम राशि शेयर बाजार में निवेश करने के लिए
आज के समय में इक्विटी में निवेश करना तो काफी आसान हो गया है लेकिन किस स्टॉक में निवेश करें और उससे भी ज़्यादा कितनी राशि का उपयोग कर निवेश करे आज भी कई निवेशकों को असमंझस में डाल देता है।
मार्केट में निवेश करने के बहुत से नियम है लेकिन कितनी राशि का उपयोग कर निवेश करना सही है उसके लिए कोई नियम नहीं है। आप अपनी कमाई, जोखिम और लक्ष्य के अनुसार मार्केट में निवेश कर सकते है।
इसके साथ अगर आप बहुत सारा पैसा एक साथ नहीं निवेश करना चाहते तो हर महीने थोड़ी-थोड़ी राशि का उपयोग कर कंपनी की इक्विटी में निवेश कर सकते है। सरल भाषा में आप अगर एक सही समझ और प्लान के साथ मार्केट में निवेश करते है तो 100 रुपए से भी इक्विटी इन्वेस्टमेंट का सफर शुरू किया जा सकता है।
यद्दपि, शेयर समग्र बिज़नेस इक्विटी से संबंधित हैं, लेकिन ये दोनों शब्द एक दूसरे से पूरी तरह अलग हैं। फिर भी, बहुत सारे उपयोगकर्ता दोनों टर्म्स के बीच भ्रमित हो जाते हैं।
आपके संदर्भ के लिए, यहां दोनों टर्म्स के बीच अंतर दिया गया हैं:
इक्विटी शेयरहोल्डर्स को कंपनी की बोर्ड मीटिंग्स में वोटिंग का अधिकार मिलता है और साथ ही कंपनी का मुनाफा होने पर डिविडेंड कमाने का हक़ भी प्रदान किया जाता है। हालांकि की इन दो अधिकारों के आधार पर इक्विटी शेयर को दो भागो में बांटा गया है:
1. Common Shares
कंपनी के लिस्टेड शेयर्स जिसमे रोज़ ट्रेड या निवेश किया जाता है वह कॉमन स्टॉक्स के अंतर्गत आते है। स्टॉक मार्केट में कई लिस्टेड कम्पनीज सिर्फ कॉमन स्टॉक्स ही प्रदान करती है, जिसके खरीदने पर शेयरधारको को वोटिंग का अधिकार प्राप्त होता है और साथ ही कंपनी की ग्रोथ के साथ अच्छा रिटर्न कमाने का मौका मिलता है।
हालांकि अगर कंपनी डिविडेंड प्रदान करती है तो कॉमन शेयरहोल्डर्स को अन्य शेयरहोल्डर की तुलना में कम प्राथमिकता दी जाती है।
जोखिमों की बात की जाए तो कॉमन स्टॉक में जहाँ ज़्यादा रिटर्न कमाने की अपेक्षा होती है वही इसमें जोखिम भी अधिक होता है।
2. Preference Shares
अब बात करते है परेफरेंस शेयर्स की। परेफरेंस शेयर कॉमन शेयर से दो प्रकार से भिन्न है:
- इसमें शेयरहोल्डर को वोटिंग का अधिकार नहीं दिया जाता।
- कंपनी के डिविडेंड में इन शेयरधारको को प्राथमिकता दी जाती है।
इसके साथ परेफरेंस शेयर एक परिपाक तिथि (maturity period) के साथ आते है, जिसमे निवेश करते समय शेयरधारको को डिविडेंड रेट, परिपाक और डिविडेंड पेआउट तिथि की जानकारी प्रदान की जाती है।
निष्कर्ष
तो ये था equity meaning in hindi का पूरा विवरण। अगर आप स्टॉक मार्केट के दुनिया में एक शुरूआती ट्रेडर या निवेशक है तो इस लेख से आप मार्केट में मौजूदा शेयर और कंपनी के बारे में काफी जानकारी प्राप्त कर पाए होंगे।
अगर आपने अभी तक स्टॉक मार्केट में निवेश नहीं किया है तो अभी शुरुआत करे और नीचे दिए गए फार्म में अपना विवरण भरे।
हम आपको एक सही स्टॉकब्रोकर चुनने में और डीमैट खाता निःशुल्क खोलने में मदद करेंगे।