फ्यूचर और ऑप्शन में अंतर

डेरीवेटिव ट्रेडिंग के दो मुख्य प्रकार जो आपको एक निर्धारित डेट पर एक निर्धारित प्राइस पर ट्रेड करने का अवसर प्रदान करता है वह है फ्यूचर और ऑप्शन। कई तरह के जोखिम होने के बावजूद बहुत से ट्रेडर इसमें ट्रेड करने की इच्छा रखते है लेकिन कई बार फ्यूचर और ऑप्शन के अंतर को सही से समझ नहीं पाते।

अगर आप भी डेरीवेटिव में ट्रेड करने के सोच रहे है तो इस लेख में हम आपको फ्यूचर और ऑप्शन के बीच के अंतर, उससे जुड़े रिस्क, प्रॉफिट और अन्य पैरामीटर के बारे में विस्तार में बताएंगे।

आइए शुरू करें। 


Difference Between Futures and Options in Hindi

फ्यूचर और ऑप्शन ही डेरिवेटिव हैं, जिसमें उनका मूल्य अंतर्निहित एस्सेस्ट के प्राइस पर निर्भर करता है, और अनुबंध ट्रेडर आने वाले समय में एस्सेस्ट खरीदने या बेचने की अनुमति देता है।

हालांकि, फ्यूचर और ऑप्शन में अंतर विभिन्न मापदंडों पर भिन्न होते हैं।

फ्यूचर और ऑप्शन दोनों में ही मार्केट प्राइस व मूवमेंट के बारे में अनुमान लगा कर मुनाफ़ा कमाने और घाटे को कम करने के साधन है लेकिन इनमे ट्रेड करने के लिए अलग-अलग आधार और मापदंडो का इस्तेमाल किया जाता है जो इन्हे एक दूसरे से भिन्न करता है।

संक्षेप में, फ्यूचर्स कॉंट्रैक्ट खरीदार को फ्यूचर डेट (एक्सपायरी डेट) पर कोई एसेट खरीदने के लिए और विक्रेता को उसकी कोई एसेट को बेचने के लिए बाध्य करता है लेकिन ऑप्शन ट्रेडिंग में खरीदार को सिर्फ़ अधिकार देता है,बाध्य नहीं करता

यहाँ पर आपको बता दे की शेयर मार्केट में एक्सपायरी (what is expiry in share market in hindi) वह तिथि होती है जिस दिन फ्यूचर और ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट सेटल होते है।

इसलिए, फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट खरीदार और विक्रेता दोनों के लिए जरुरी होता  है, जबकि ऑप्शन कॉंट्रैक्ट केवल विक्रेता के लिए जरुरी होता है।

इन दोनों ट्रेडिंग प्रकार को थोड़ा विस्तार में समझते है।

फ्यूचर ट्रेडिंग

फ्यूचर ट्रेडिंग वह डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट है जिसमे बायर और सेलर किसी भी स्टॉक, कमोडिटी, करेंसी या इंडेक्स को फ्यूचर डेट में एक निर्धारित मूल्य पर खरीदने या बेचने के लिए बाध्य होते है।

इसमें एक्सपायरी डेट पर बायर और सेलर अंडरलाइंग एसेट को खरीदने और बेचने के लिए बाध्य होते है, यानी की बायर को ट्रेड सेटल करने के लिए एसेट को खरीदना और सेलर को बेचना अनिवार्य होता है।

इसमें किसी एक को फायदा तो दूसरे को नुकसान होता है और इसलिए इसमें जोखिम ज़्यादा होते है।

Option Trading in Hindi

अब बात करते है ऑप्शन ट्रेडिंग की जहाँ पर बायर प्रीमियम देकर एक्सपायरी डेट पर अंतनिर्हित परिसम्पति को खरीदने या बेचने का अधिकार प्राप्त करता है लेकिन बाध्य नहीं होता वही ऑप्शन सेलर उस अंडरलाइंग एसेट को बेचने या खरीदने के बाध्य होता है।

इसमें बायर एक कम वैल्यू के साथ ट्रेड में पोजीशन ले सकता है लेकिन सेलर को अपने ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन रखकर ही ऑप्शन सेल करने का अवसर प्राप्त होता है।

ऑप्शन ट्रेडिंग में दो प्रकार कॉल और पुट ऑप्शन (call and put option in hindi) होते है।

कॉल ऑप्शन में बायर को प्रीमियम देकर एक्सपायरी वाले दिन अंतनिर्हित परिसम्पति को खरीदने का अधिकार मिलता है वही पुट ऑप्शन में बायर बेचने का अधिकार लेता है।

ट्रेंड की बात करे तो कॉल ऑप्शन का बायर बुलिश और पुट ऑप्शन का बायर मार्केट को लेकर बेयरिश होता है।


Future and Option Trading Example in Hindi

अब फ्यूचर और ऑप्शन दोनों को और बारीकी से समझने के लिए एक उदाहरण लेते है जिसमे निम्नलिखित स्थिति के अनुसार दो लोग ट्रेड में पोजीशन लेते है।

A और B दो ट्रेडर्स है और मान लेते है की निफ़्टी 18000 की वैल्यू पर ट्रेड कर रहा है। A को लगता है की अगले एक हफ्ते में निफ़्टी की वैल्यू 18500 तक पहुंच जाएगी, यानी की वह उसे लेकर बुलिश है, दूसरी तरफ B को लगता है की निफ़्टी 18000 पर ही ट्रेड करेगा या इससे नीचे गिर सकता है, एक तरह से वह बेयरिश है।

Future Trading Example in Hindi

अब दोनों फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में पोजीशन लेते है, A 1 लॉट खरीदने के फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट बाय करता हैऔर B 1 लॉट बेचने के लिए सेल पोजीशन। दोनों अपने ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन रखते है अब,

  • एक्सपायरी वाले दिन निफ़्टी 18400 पर बंद हुआ:

यहाँ पर क्योंकि A ने 18000 की वैल्यू का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट ख़रीदा हुआ था यानी की वह एक्सपायरी पर 18000 की वैल्यू के साथ ट्रेड सेटल कर सकता है और इसमें उसको पूरे 400 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से मुनाफा कमाने को मिला। वही B ट्रेड को 18000 की वैल्यू में सेटल करने के बाध्य है और इसलिए उसे इस ट्रेड में 400 रुपये का नुकसान हुआ।

  • एक्सपायरी वाले दिन निफ़्टी 18000 पर बंद हुआ:

यहाँ पर A और B दोनों को न ही मुनाफा हुआ न ही लॉस।

  • एक्सपायरी वाले दिन निफ़्टी 17800 पर बंद हुआ:

यहाँ पर मार्केट B के अनुसार बेयरिश रही और इसलिए ऐसे स्थिति में B को 200 रुपये प्रति यूनिट का फायदा और A को 200 रुपये प्रति यूनिट का नुकसान हुआ।


Option Trading Example in Hindi

अब बात करते है ऑप्शन ट्रेडिंग की जहाँ बायर प्रीमियम देता है और ट्रेड को सेटल करने के बाध्य नहीं होता। मान लेते है निफ़्टी 18000 CE के ऑप्शन को बाय करने के लिए A ने 100 रुपये प्रति यूनिट का प्रीमियम दिया।

B को ऑप्शन को सेल करने के लिए मार्केट के जोखिम और वोलैटिलिटी के अनुसार अपने ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन रखना होगा जिसकी जानकारी ब्रोकर की ट्रेडिंग एप में उपलब्ध होती है।

  • एक्सपायरी वाले दिन निफ़्टी 18400 पर बंद हुआ:

यहाँ पर क्योंकि A ने कॉल ऑप्शन बाय किया था तो वह इस ट्रेड को सेटल करने का अधिकार रखता है।

स्ट्राइक प्राइस: 18000
स्पॉट प्राइस: 18400
प्रीमियम: 100

कुल मुनाफा: 18400-(18000+100)
=300 प्रति यूनिट

क्योंकि सेलर B इस ट्रेड को करने के लिए बाध्य है तो यहाँ पर B को 300 रुपये प्रति यूनिट का नुकसान होगा।

  • एक्सपायरी वाले दिन निफ़्टी 18000 पर बंद हुआ:

क्योंकिं स्ट्राइक प्राइस और स्पॉट प्राइस एक बराबर है तो यहाँ पर A को इस ट्रेड से किसी भी तरह का मुनाफा नहीं होगा और वह बिना सेटलमेंट के ट्रेड से बाहर निकल जाएगा।

यहाँ पर लेकिन A को प्रीमियम का नुकसान होगा, वही B को प्रीमियम से मुनाफा कमाने का मौका मिलेगा।

  • एक्सपायरी वाले दिन निफ़्टी 17800 पर बंद हुआ:

यहाँ पर क्योंकिं मार्केट स्ट्राइक प्राइस से नीचे बंद हुई तो A इस ट्रेड को एक्सेक्यूट नहीं करेगा और इस स्थिति में भी उसे प्रीमियम का नुकसान और B को मुनाफा होगा।


Future and Option Strategies in Hindi

अब फ्यूचर और ऑप्शन के अंतर को और विस्तार से जानने के लिए इनकी स्ट्रैटेजी पर चर्चा करते है। आपको बता दे की ट्रेडर अलग-अलग स्ट्रेटेजीज का उपयोग कर अपने जोखिमों को कम करता है और ज़्यादा मुनाफे कमाने का अवसर प्राप्त करता है।

लेकिन किस समय में कौनसी स्ट्रेटेजी ज़्यादा उपयोगी और फायदेमंद हो सकती है उसके लिए एक ट्रेडर को पूरी जानकारी होनी चाहिए।

अब यहाँ पर जानते है की फ्यूचर और ऑप्शन की स्ट्रेटेजी किस तरह से अलग है और एक ट्रेडर के लिए अपने जोखिमों को कम करने के लिए कौन-कौन से विकल्प है।

Futures Trading Strategies in Hindi

इंडियन शेयर मार्केट में फ्यूचर ट्रेड ज़्यादातर कमोडिटी में की जाती है और उसके लिए 4 मुख्य स्ट्रेटेजी का उपयोग किया जाता है जिसका विवरण नीचे लेख में दिया गया है।

1. लॉन्ग ट्रेड

इसका सीधा अर्थ है फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में लॉन्ग पोजीशन लेना। जब ट्रेडर मार्केट को लेकर बुलिश होता है तो इस स्ट्रेटेजी का उपयोग कर मार्केट में फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को खरीदता है।

अगर एसेट का प्राइस एक्सपायरी वाले दिन ज़्यादा में क्लोज होता है तो ट्रेडर को मुनाफा कमाने का अवसर प्राप्त होता है।

2. शार्ट ट्रेड

अगर ट्रेडर किसी एसेट या स्टॉक को लेकर बेयरिश है तो फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को खरीदने के बजाय वह इसे बेचते है यानी की इसमें शार्ट पोजीशन लेते है।

अगर एक्सपायरी वाले दिन शेयर का प्राइस फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में दिए मूल्य से नीचे बंद होता है तो ट्रेडर को इस शार्ट स्ट्रेटेजी से मुनाफा कमाने का मौका मिलता है।

3. कैलेंडर स्प्रेड

इस स्ट्रेटेजी में ट्रेडर मार्केट को लेकर बुलिश होता है और एक ही एसेट के अलग-अलग एक्सपायरी के साथ खरीदता और बेचता है। इसमें पास वाली एक्सपायरी में ट्रेडर लॉन्ग पोजीशन और दूर वाली एक्सपायरी के लिए शार्ट पोजीशन लेता है।

इसमें ट्रेडर को फायदा तब होता है जब लॉन्ग पोजीशन तेज़ी से ऊपर की ओर ट्रेंड करती है जिससे दोनों कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू के बीच अंतर बढ़ता रहता है। इस स्ट्रेटेजी का उपयोग कर ट्रेडर फ्यूचर मार्जिन की राशि को भी घटा सकते है।

4. बीयर कैलेंडर स्प्रेड

अगर आप मार्केट को लेकर बेयरिश है और साथ ही अपने जोखिमों को कम करना चाहते है तो उसके लिए बीयर कैलेंडर स्प्रेड स्ट्रेटेजी का उपयोग किया जा सकता है।

इस स्ट्रेटेजी में ट्रेडर कम एक्सपायरी वाले कॉन्ट्रैक्ट को बेचता है और ज़्यादा एक्सपायरी वाले कॉन्ट्रैक्ट को खरीदता है। यहाँ पर ट्रेडर को मुनाफा तब होता है जब वह मार्केट प्राइस नीचे की ओर गिरता है।

बुल कैलेंडर स्प्रेड की तरह इसमें भी कम मार्जिन और कम जोखिमों के साथ पोजीशन लेने का मौका प्राप्त होता है।

Option Trading Strategies in Hindi 

ऑप्शन ट्रेडिंग स्ट्रैटेजी की बात करें तो कई तरह की स्ट्रेटेजीज इंडियन शेयर मार्केट में उपयोग की जाती है जो ट्रेडर को रिस्क कम कर मुनाफा कमाने का मौका प्रदान करती है।

अब वैसे तो 10 से भी स्ट्रेटेजी ऑप्शन ट्रेडिंग के लिए उपलब्ध है लेकिन यहाँ पर 5 मुख्य स्ट्रेटेजी का विवरण दिया गया है।

1. बुल कॉल स्प्रेड

ये एक तरह की बुलिश ऑप्शन स्ट्रेटेजी है जिसमे ट्रेडर कम स्ट्राइक प्राइस वाले ऑप्शन को खरीदता है और साथ में उसी एक्सपायरी वाले कॉल ऑप्शन को बेचता है। इससे वह अपने मुनाफे (स्प्रेड माइनस नेट प्रीमियम) और नुकसान (नेट प्रीमियम के बराबर) को सीमित करके ट्रेड में पोजीशन लेता है।

इस स्ट्रेटेजी में बायर को तभी फायदा होता है जब स्टॉक या अंडरलाइंग एसेट का प्राइस बढ़ता है।

2. बुल पुट स्प्रेड

एक तरह की बुलिश स्ट्रेटेजी जिसमे अगर ट्रेडर मार्केट को लेकर बुलिश हो तो वह कम स्ट्राइक प्राइस वाले ऑप्शन को बेचता है और ज़्यादा वाले को खरीदता है। इससे वह प्रीमियम से मुनाफा कमाता है।

अब ट्रेडर को मुनाफा तब होता है जब मार्केट अपट्रेंड में एक्सपायर हो। यहाँ पर नुकसान तभी होता है जब प्राइस कम वाले स्ट्राइक प्राइस से नीचे बंद हो।

3. बीयर कॉल स्प्रेड 

ये 2-लेगेड बेयरिश ऑप्शन स्ट्रेटेजी है जिसमे ट्रेडर मार्केट को लेकर थोड़ा बेयरिश होता है और ऐसे में अपने जोखिमों को कम करने के लिए ज़्यादा स्ट्राइक प्राइस वाले कॉल ऑप्शन को खरीदता है और कम स्ट्राइक प्राइस वाले को बेचता है।

इस स्ट्रेटेजी से वह नेट प्रीमियम (दोनों ऑप्शन के प्रीमियम के अंतर) से मुनाफा कमाता है। अब अगर मार्केट कम स्ट्राइक प्राइस से नीचे बंद होती है तो ट्रेडर को मुनाफा कमाने का अवसर प्राप्त होता है।

4. बीयर पुट स्प्रेड 

ये स्ट्रेटेजी बुल कॉल स्ट्रेटेजी जैसे ही है बस यहाँ पर ट्रेडर मार्केट को लेकर बेयरिश होता है। बीयर पुट स्ट्रेटेजी में ट्रेडर कम स्ट्राइक प्राइस वाला पुट को खरीदता है और ज़्यादा वाले को बेचता है।

यहाँ पर ट्रेडर को मुनाफा तब होता है जब मार्केट ज़्यादा स्ट्राइक प्राइस से ऊपर एक्सपायर होती है।

5. लॉन्ग स्ट्रैडल 

एक ही अंडरलाइंग एसेट के एक ही एक्सपायरी के दो ऑप्शन (एक कॉल और एक पुट) खरीदना जिससे ट्रेडर अपने मुनाफे और नुकसान को सीमित करके चल सके। इस स्ट्रेटेजी का उपयोग तब किया जाता है जब ट्रेडर मार्केट के ट्रेंड को लेकर कोई निर्णय नहीं ले पा रहा हो।

इस स्ट्रेटेजी में ज़्यादातर ATM ऑप्शन का कॉल और पुट ख़रीदा जाता है यानी की मार्केट चाहे ऊपर जाये या नीचे दोनों स्थिति में ट्रेडर मुनाफा कमा सकता है।


फ्यूचर या ऑप्शन ट्रेडिंग कौन सा बेहतर है?

अंत में, यह समझने की जरूरत है कि फ्यूचर और ऑप्शन में अंतर के बीच कोई एक प्रकार का ट्रेड नहीं है जो दूसरे से बेहतर हो।

यह वास्तव में ट्रेडिंग की वरीयता (Preference), जोखिम उठाने की क्षमता , निवेश के उद्देश्यों, समय क्षितिज और अन्य संबंधित कारकों पर निर्भर करता है जो उस समय उन्हें सूट करता है।

जबकि ऑप्शंस ट्रेड आपको नुकसान को कम करने में मदद कर सकते हैं, फ्यूचर  कॉन्ट्रैक्ट आपको एक निश्चित संभावित लाभ (जब तक आप उद्देश्यपूर्ण रूप से ट्रेड  कर रहे हैं) के साथ सहायता करता है।

हमें उम्मीद है की अब आप फ्यूचर और ऑप्शन में अंतर के बीच की सारी जानकारी से स्पष्ट हो गए होंगें,यदि फिर भी आपके मन में इस विषय से जुड़े कोई सवाल है तो आप हमे कॉल कर सकते है।

आपको शुरू करने के लिए कॉलबैक की व्यवस्था की जाएगी:

यदि आप शेयर बाजार में ट्रेडिग के साथ शुरुआत करना चाहते हैं, तो आप नीचे दिए गए फॉर्म में अपना विवरण प्रदान कर सकते हैं। जिसके बाद आपके लिए एक कोलबैक की व्यवस्था की जाएगी:

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फ्यूचर्स और आप्शनस में अंतर
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