Call and Put Option in Hindi

डेरीवेटिव के बारे में और जानें

शेयर बाजार में कई तरह के ट्रेडिंग सेगमेंट है और उसमे सबसे ज़्यादा जो ट्रेडर्स को आकर्षित करता है वह है ऑप्शन ट्रेडिंग। ऑप्शन ट्रेडिंग (option trading in hindi) की विस्तार में बात करें तो ये एक तरह का कॉन्ट्रैक्ट होता है जो एक बायर को ऑप्शन एक्सपायरी वाले दिन ट्रेड सेटल करने का अधिकार देता है लेकिन बाध्य नहीं करता। अब ये दो प्रकार के होते है कॉल और पुट ऑप्शन (call and put option in hindi) जिसका विवरण आज हम इस लेख में करेंगे।

What is Call and Put Option in Hindi?

लेकिन ऑप्शन ट्रेडिंग के प्रकार समझने से पहले ऑप्शन ट्रेडिंग (option trading in hindi) को थोड़ा और अच्छे से समझते है।

मान लीजिये आप एक थोक सब्जी विक्रेता हैं। आप सब्जियों के माल ढुलाई के लिए ट्रांसपोर्टेशन की मदद लेते हैं।

अगर मार्केट में डीजल या पेट्रोल की कीमत बढ़ेंगे तो आपको सब्जियों के माल ढुलाई के लिए ज्यादा पैसे देने पड़ंगे। परिणामस्वरूप, आप इस अतिरिक्त खर्चे को बैलेंस करने के लिए सब्जियों के दाम में इजाफ़ा करेंगे।

अब आप इस पूरे परिदृश्य को देखते हैं तो आपको पता लगा होगा कि अगर पेट्रोल या डीजल के भाव बढ़ेंगे तो सब्जियों के दाम भी बढ़ जाएंगे।

ठीक इसी तरह, इक्विटी ऑप्शन (equity Option) भी एक डेरीवेटिव इंस्ट्रूमेंट (Derivative Instrument) है, जिनकी कीमतें अन्य फाइनेंशियल प्रोडक्ट (Financial Product) के मूवमेंट पर निर्भर करती है।

ये ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट एक निर्धारित वैल्यू (ऑप्शन प्रीमियम) और वैलिडिटी के साथ आते है। ऑप्शन बायर सेलर (ऑप्शन राइटर) को वह प्रीमियम देता है और ऑप्शन को अपने चुने हुए स्ट्राइक प्राइस पर ट्रेड करने का अधिकार लेता है।

अब शेयर मार्केट में सभी ट्रेड ट्रेंड पर निर्भर करती है, अगर ट्रेंड बुलिश है तो आप लॉन्ग पोजीशन लेते है और इंट्राडे ट्रेडिंग में ट्रेंड बेयरिश होने पर शार्ट पोजीशन ली जाती है।

डेरीवेटिव मार्केट में इन्ही ट्रेंड के आधार पर दो तरह के ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट होते है: कॉल और पुट ऑप्शन (call and put option in hindi)

अब यह क्या होता है वह जानते है।

कॉल ऑप्शन क्या है?

इसको समझने के लिए ऑप्शन ट्रेडिंग का एक उदाहरण (option trading example in hindi) लेते है। मान लेते है की रिलायंस का शेयर ₹2000 में ट्रेड कर रहा है और एक महीने में इसकी तिमाही रिपोर्ट आने वाली है जिसको लेकर आप काफी सकारात्मक है।

आप इसके शेयर खरीदना तो चाहते है लेकिन आपका विश्लेषण गलत भी हो सकता है इस वजह से आप जोखिम नहीं उठाना चाहते। तो ऐसे में आप कॉल ऑप्शन खरीदने का फैसला करते है।

आप ₹2000 के स्ट्राइक प्राइस पर मासिक कॉल ऑप्शन खरीदते है जिसके लिए आप एक प्रीमियम वैल्यू देते है। मान लेते है कि वह प्रीमियम ₹100 प्रति शेयर है और एक लाट में 250 शेयर है, तो एक तरह से ट्रेड करने के लिए आपने (250*100) ₹25000 दिए।

एक ट्रेडर कॉल ऑप्शन तब खरीदता है जब वह मार्केट या स्टॉक को लेकर बुलिश होता है और पोजीशन लेने के लिए लिए एक बायर हमेशा प्रीमियम देता है। 

अब मान लेते है कि एक महीने बाद रिलायंस की रिपोर्ट काफी अच्छी आई जिससे उसके शेयर प्राइस काफी तेज़ी से बढ़ने लगे और एक्सपायरी डेट तक ₹2300 रुपए हो गया।

अब क्योंकि ऑप्शन सेलर जिसने प्रीमियम लिया है वह अंडरलाइंग एसेट्स (रिलायंस शेयर्स) को निर्धारित कीमत पर तय मात्रा में खरीदार को बेचने के बाध्य होता है वह आपको रिलायंस के शेयर एक्सपायरी वाले दिन ₹2000 के हिसाब से बेचेगा।

इस तरह से कम प्राइस में शेयर्स खरीदकर आप मुनाफा कमा सकते है।

कॉल ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट में एक खरीददार (Buyer) के पास अधिकार होता हैं, लेकिन वे उसके लिए बाध्य या उसका दायित्व नहीं होता कि, वे कॉन्ट्रैक्ट में निर्धारित की गयी अंडरलाइंग स्टॉक (Underlying Assets) की तय मात्रा को तय समय पर तय कीमत पर खरीदें।

कॉल ऑप्शन बायर को अंडरलाइंग एसेट स्ट्राइक प्राइस पर खरीदने का अधिकार होता है और कॉल ऑप्शन सेलर उस प्राइस पर स्टॉक को बेचने के लिए बाध्य होता है।

ऊपर वाले उदाहरण को फिर से देखे तो आप जो एक ऑप्शन बायर है (2300-2000-100) ₹200 रुपये के मुनाफे पर है। अब आप सोच रहे है कि ₹100 और क्यों घटाए, तो यहाँ पर ये ₹100 आपका प्रीमियम वैल्यू है जो आपने ऑप्शन में पोजीशन लेने के लिए दी थी।

अगर मार्केट बुलिश ट्रेंड में रही तो कॉल ऑप्शन बायर को असीमित लाभ कमाने का अवसर प्राप्त होता है जो स्ट्राइक और स्पॉट प्राइस के अंतर से निकला जाता है। वही पर एक सेलर शेयर बेचने के लिए बाध्य होता है और इसलिए बुलिश मार्केट में कॉल ऑप्शन सेलर को असीमित नुकसान होता है।

नीचे दिए गए पाय ऑफ चार्ट में रेड जोन ऑप्शन बायर का नुकसान और ग्रीन जोन असीमित मुनाफे को दर्शाता है। यहाँ पर जब स्ट्राइक प्राइस (strike price in hindi) की वैल्यू स्पॉट प्राइस से कम होती है तो बायर को मुनाफा होता जो उसके दिए हुए प्रीमियम की कीमत के बाद शुरू होता है।

यहाँ पर सेलर के मुनाफे की बात करें तो वह तभी होगा जब रिलायंस के शेयर या तो ₹2000 पर ही रहे या उसकी वैल्यू इससे नीचे गिर जाए।

कॉल ऑप्शन सेलर का मुनाफा तभी होता है जब मार्केट सिडेवेस हो या प्राइस नीचे गिर जाये और ये मुनाफा सिर्फ प्रीमियम तक ही सीमित होता है।

अब मान लेते है कि रिलायंस का शेयर प्राइस नीचे गिर गया और एक्सपायरी वाले दिन ₹1700 रुपये पर पहुंच गया तो क्योंकि यहाँ पर आप ट्रेड करने के बाध्य नहीं है तो बिना सेटलमेंट के ट्रेड से एग्जिट कर सकते है, लेकिन जो आपने प्रीमियम दिया था वह नुकसान आपको उठाना पड़ेगा।

कॉल ऑप्शन बायर को मार्केट गिरने पर नुकसान होता है जो उसके प्रीमियम तक सीमित होता है।


पुट ऑप्शन क्या है?

पुट ऑप्शन, कॉल ऑप्शन के बिलकुल विपरीत है। अब ऊपर वाले उदाहरण को थोड़ा सा बदलते है। मान लेते है की रिलायंस के आने वाली तिमाही रिपोर्ट को लेकर आप बेयरिश है और इसके चलते आपने ₹2000 रुपये के स्ट्राइक प्राइस पर पुट ऑप्शन खरीद लिया, जिसके लिए आपने ₹100 रुपये प्रीमियम दिया।

एक ट्रेडर पुट ऑप्शन तभी खरीदता है जब वह शेयर या मार्केट को लेकर बेयरिश होता है।

अब मान लेते है की शेयर का प्राइस की रिलायंस के शेयर में गिरावट देखने को मिली और एक महीने बाद शेयर का प्राइस ₹1700 हो गया। अब क्योंकि आपने यहाँ पर पुट ऑप्शन ख़रीदा हुआ है तो आपके पास ये शेयर ₹2000 के हिसाब से बेचने का अधिकार है।

अब यहाँ पर अगर आपके पास अगर रिलायंस के शेयर है जो आपने ₹2000 से कम कीमत पर ख़रीदे थे, आप उन्हें ₹2000 में ऑप्शन सेलर को बेच सकते है या फिर आप मार्केट से ₹1700 के प्रति शेयर के हिसाब से स्टॉक को खरीद कर ₹2000 के हिसाब से बेच सकते है।

पुट ऑप्शन बायर को अंडरलाइंग एसेट स्ट्राइक प्राइस पर बेचने का अधिकार होता है और पुट ऑप्शन सेलर उस प्राइस पर स्टॉक को खरीदने के लिए बाध्य होता है।

इस तरह से आप ₹200 (2000-1700-100) का मुनाफा कमा सकते है। यहाँ पर ₹100 रुपये प्रीमियम है जो आपने इस पोजीशन में ट्रेड करने के लिए दिया था।

पुट ऑप्शन में बेयरिश ट्रेंड में एक बायर को मुनाफा असीमित होता है लेकिन इस मुनाफे की गणना ब्रेकइवन पॉइंट के बाद होती है। इसी तरह से पुट ऑप्शन सेलर को बेयरिश मार्केट में असीमित नुकसान होता है।

अब मान लेते है की मार्केट बुलिश हो गयी और रिलायंस के शेयर प्राइस एक्सपायरी तक ₹2200 के हो गए तो ऐसे में पुट ऑप्शन बायर ट्रेड एक्सेक्यूट नहीं करेगा, और प्रीमियम के नुकसान के साथ मार्केट से एग्जिट कर जाएगा।

तो एक तरफ जहाँ पुट ऑप्शन बायर को बुलिश मार्केट में प्रीमियम का नुकसान होता है वही दूसरी तरफ पुट ऑप्शन सेलर प्रीमियम से लाभ कमाता है और यहाँ पर एक सेलर का लाभ सिर्फ प्रीमियम तक ही सीमित होता है।

इस तरह से कॉल और पुट ऑप्शन (call and put option in hindi) अलग-अलग मार्केट ट्रेंड मे बाय और सेल पोजीशन से लाभ कमाने का अवसर प्रदान करते है।


Call and Put Option Difference in Hindi

ऊपर दिए हुए उदाहरण से आप कॉल एंड पुट ऑप्शन (call and put option in hindi) को समझ गए होंगे तो चलिए एक बार इनके बीचे के अंतर को थोड़ा और अच्छे से जानते है।

नीचे दिए गए टेबल में कॉल और पुट ऑप्शन के बीच का अंतर समझाया गया है:

 


Call and Put Option Margin in Hindi

अब जिस तरह से एक बायर को ऑप्शन ट्रेडिंग पोजीशन लेने के लिए प्रीमियम देना होता है, ऑप्शन सेलर को अपने ट्रेडिंग अकाउंट में एक मार्जिन अमाउंट रखना होता है।

अब आप सोच रहे होंगे कि इस मार्जिन की क्या ज़रुरत?

तो ऊपर दिए हुए दोनों उदाहरणों में स्पष्ट किया गया है कि सेलर ट्रेड सेटल करने के बाध्य होता है और अगर मार्केट सेलर के विपरीत जाती है तो उनको असीमित नुकसान होता है।

अब ट्रेड से जुड़े इन्ही जोखिमों को मांगे करने के लिए एक सेलर को अपने अकाउंट में मार्जिन मनी रखनी होती है। ये मार्जिन अमाउंट स्ट्राइक प्राइस, इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी और अन्य पैरामीटर पर निर्भर करती है।

इसको एक उदाहरण से समझते है।

मान लेते है कॉल ऑप्शन सेल करने के लिए रिलायंस के एक लॉट को ₹2000 के स्ट्राइक प्राइस पर बेचने के लिए 30% तक का मार्जिन अकाउंट में रखना है। अब यहाँ पर मार्जिन की गणना कर जानते है कि एक सेलर को लगभग कितना मार्जिन रखना होगा।

स्ट्राइक प्राइस= ₹2000
लॉट साइज= 250 
टोटल वैल्यू= ₹5,00,000 
मार्जिन: 30%*5,00,000 

=₹1,50,000 

अब इसमें स्पेन और एक्सपोज़र मार्जिन की वैल्यू होती है जो वोलैटिलिटी और रिस्क पर  निर्भर करती है, और ये वैल्यू ट्रेंड के अनुसार कम ज़्यादा होती रहती है।

यहाँ से ये बात स्पष्ट है कि ऑप्शन बायर सिर्फ प्रीमियम अमाउंट के साथ मार्केट में ऑप्शन पोजीशन ले सकता है वही दूसरी तरफ ऑप्शन सेलर को ज़्यादा पैसो के साथ ऑप्शन में ट्रेड करने की अनुमति मिलती है।


Call Put Option Strategy in Hindi 

कॉल और पुट ऑप्शन अलग-अलग मार्केट ट्रेंड में ट्रेड करने का एक अवसर प्रदान करते है, लेकिन आप इन दोनों ऑप्शन को एक साथ या प्रत्येक ऑप्शन में एक से ज़्यादा पोजीशन ले अपने नुकसान को सीमित और मुनाफे की गणना कर ट्रेड कर सकते है।

अब इसके लिए अलग-अलग ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी दी गयी है जिसका इस्तेमाल आप अपने रिस्क को मैनेज करने के लिए कर सकते है। इन सभी स्ट्रेटेजी में एक ट्रेडर एक से ज़्यादा पोजीशन ले सकता है लेकिन उसे ये सभी पोजीशन एक ही अंडरलाइंग एसेट, और एक्सपायरी डेट के लिए लेनी होती है।

वैसे ऑप्शन ट्रेडिंग में कई तरह की स्ट्रेटेजीज का उपयोग होता है, लेकिन यहाँ पर 6 स्ट्रैटेजी का विवरण दिया गया है।

1. बुल कॉल स्प्रेड

ये एक बुलिश ऑप्शन स्ट्रेटेजी है जिसमे एक ट्रेडर कम स्ट्राइक प्राइस वाले कॉल ऑप्शन बाय करता है और ज़्यादा स्ट्राइक प्राइस वाले कॉल ऑप्शन को बेचता है। अब क्योंकि कम स्ट्राइक प्राइस ऑप्शन का प्रीमियम ज़्यादा होता है तो इस ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी को डेबिट ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी भी कहा जाता है।

इसको एक उदाहरण से समझते है, मान लेते है कि आपने निफ़्टी50 जो अभी 17000 पर ट्रेड कर रहा है उसका 17000 का कॉल जिसका प्रीमियम 150 रुपये है वह ख़रीदा और 17500 वाले ऑप्शन 50 रुपये प्रीमियम लेकर बेचा। तो एक ट्रेड में आपको प्रीमियम देना होगा और दूसरे में आपको प्रीमियम मिलेगा।

नेट प्रीमियम = 150-50
नेट डेबिट =100

अगर मार्केट में निफ़्टी की वैल्यू बढ़ती है और 17150 या उससे ऊपर तक पहुँचती है तो आपको मुनाफा होगा। मान लेते है कि एक्सपायरी वाले दिन निफ़्टी की वैल्यू 17500 है तो प्रॉफिट और लॉस की गणना निम्नलिखित होगी:

लॉन्ग पोजीशन= 17500-17000
=500

शार्ट पोजीशन= प्रीमियम
=50

टोटल प्रॉफिट= 500+50= 550

अब क्योंकि नेट प्रीमियम नेगेटिव था तो यहाँ पर नेट प्रॉफिट:

=550-100
नेट प्रॉफिट =450

दूसरी तरफ इस स्ट्रेटेजी में लॉस नेट डेबिट यानी की 100 रुपये तक सीमित रहता है।


2. बुल पुट स्प्रेड

ये स्ट्रेटेजी भी उनके लिए है जो मार्केट को लेकर बुलिश है। अब यहाँ पर कॉल की जगह पुट ऑप्शन को बाय और सेल कर अपने प्रॉफिट और लॉस को सीमित किया जाता है।

इस स्ट्रेटेजी में ट्रेडर एक पुट OTM खरीदता है और पुट ITM बेचता है। इस तरह से कम प्रीमियम देकर और ज़्यादा प्रीमियम लेकर दो पोजीशन एक साथ ली जाती है।

इसे समझने के लिए ऊपर वाला उदाहरण ही लेते है।

नेट क्रेडिट= 150-50=100

अगर निफ़्टी की वैल्यू बढ़ती है तो वह पर ट्रेडर को मुनाफा होना शुरू होगा जो उसके प्रीमियम के बराबर होगा और दूसरी तरफ नुकसान तब होगा जब मार्केट OTM स्ट्राइक प्राइस से नीचे गिरेगी।


3. बीयर कॉल स्प्रेड 

बीयर पुट स्ट्रेटेजी उन ट्रेडर्स के लिए है जो मार्केट को लेकर थोड़े बेयरिश है। इस स्ट्रेटेजी में ट्रेडर 1 OTM कॉल बाय करता है और 1 ITM कॉल सेल। इस तरह से वह इस स्ट्रेटेजी से प्रीमियम से पैसा कमाता है।

और ये मुनाफा तब निश्चित हो जाता है जब स्टॉक या इंडेक्स का प्राइस गिरे।

दूसरी तरफ इस स्ट्रेटेजी का लॉस भी सीमित रहता है स्प्रेड (हायर और लोवर स्ट्राइक प्राइस का अंतर) और प्रीमियम वैल्यू के अंतर से निकाला जाता है।

तो अगर आप निफ़्टी ५० को लेकर बेयरिश हो और इस स्ट्रेटेजी का इस्तेमाल कर 17500 वाले स्ट्राइक प्राइस कॉल ऑप्शन को 50 रुपये प्रीमियम देकर ख़रीदा और 16500 वाले को 100 रुपये प्रीमियम में बेचा तो टोटल 100 रुपये प्रीमियम आपका मुनाफा होगा।

अब इस स्ट्रेटेजी में आपको नुकसान तब होगा जब मार्केट बढ़ेगी। तो मान लेते है की निफ़्टी की वैल्यू 17000 से 17200 तक पहुंच गयी, तो यहाँ पर आप अपनी लॉन्ग पोजीशन का सेटलमेंट नहीं करेंगे लेकिन शार्ट पोजीशन (16500) वाली पोजीशन के लिए आप बाध्य है तो आपको वो सेटल करना होगा और इसमें नुकसान की गणना निम्नलिखित होगी:

लॉन्ग पोजीशन= प्रीमियम का मुनाफा
=+50

शार्ट पोजीशन= 17200-16500
=700

प्रीमियम= 150

नुकसान= 700-150
=550 

कुल नुकसान= 550-50
=450 


4. बीयर पुट स्प्रेड 

ये स्ट्रेटेजी भी बीयर कॉल की तरह ही होती है बस इसमें कॉल की जगह पुट ऑप्शन ट्रेड किये जाते है। इस स्ट्रेटेजी में ट्रेडर एक ITM पुट पर लॉन्ग पोजीशन लेता है और OTM पुट ऑप्शन में शार्ट पोजीशन लेता है।

अगर मार्केट ऊपर की और ट्रेंड करेगी तो ट्रेडर को इस स्ट्रेटेजी से नुकसान होता है जिसकी गणना प्रीमियम के अंतर से की जाती है वही दूसरी तरफ मार्केट के नीचे गिरने पर ट्रेडर को कमाए हुए प्रीमियम और स्प्रेड के अंतर से प्रॉफिट कमाने का अवसर मिलता है।


5. लॉन्ग स्ट्रैडल स्ट्रेटेजी 

ये स्ट्रेटेजी तब इस्तेमाल की जाती है जब आप मार्केट को लेकर कोई भी एक विचार न बना पा रहे हो। इस स्ट्रेटेजी में ट्रेडर एक ATM कॉल और पुट में लॉन्ग पोजीशन लेता है।

लॉन्ग स्ट्रैडल स्ट्रेटेजी में एक ट्रेडर को असीमित प्रॉफिट होता है और नुकसान प्रीमियम तक सीमित रहता है।

उदाहरण के लिए निम्नलिखित स्थिति को लेते है:

निफ़्टी५० का वर्तमान मूल्य= 17000

एटीएम कॉल प्रीमियम= 50
एटीएम पुट प्रीमियम= 45

नेट प्रीमियम= 50+45
=95

मार्केट एक्सपीरड  बुलिश= 17300

कॉल लॉन्ग पोजीशन सेटलमेंट= हां
पुट लॉन्ग पोजीशन सेटलमेंट= नहीं

टोटल प्रॉफिट= (17300-17000)-95
=205

मार्केट एक्सपीरड बेयरिश= 16800

कॉल लॉन्ग पोजीशन सेटलमेंट= नहीं
पुट लॉन्ग पोजीशन सेटलमेंट= हां

टोटल प्रॉफिट= (17000-16800)-95
=105


6. लॉन्ग स्ट्रांगेल स्ट्रेटेजी 

ये स्ट्रैडल स्ट्रेटेजी की तरह होती है लेकिन इस स्ट्रेटेजी में ट्रेडर OTM कॉल और पुट ऑप्शन को खरीदता है। इसमें भी ट्रेडर को असीमित मुनाफा होता है और नुक्सान प्रीमियम तक सीमित रहता है।

उदाहरण के लिए निम्नलिखित स्थिति को लेते है:

निफ़्टी५० का वर्तमान मूल्य= 17000

OTM कॉल 17200 प्रीमियम= 20
OTM पुट 16800 प्रीमियम= 25

नेट प्रीमियम= 20+25
=45

मार्केट एक्सपीरड  बुलिश= 17300

कॉल लॉन्ग पोजीशन सेटलमेंट= हां
पुट लॉन्ग पोजीशन सेटलमेंट= नहीं

प्रॉफिट= 17300-17200-45
=55

मार्केट एक्सपीरड  बुलिश= 16500

कॉल लॉन्ग पोजीशन सेटलमेंट= नहीं
पुट लॉन्ग पोजीशन सेटलमेंट= हां

प्रॉफिट= 16800-16500-45
=255


ऑप्शन ट्रेडिंग में कितना चार्ज लगता है?

अब मीनिंग भी समझ गए और स्ट्रेटेजी भी, लेकिन ट्रेड करने पर ब्रोकरेज कितना देना होगा? ये निर्भर करता है ब्रोकर और उसकी ट्रेडिंग सर्विस पर, जैसे अगर आपको सिर्फ ट्रेडिंग प्लेटफार्म चाहिए तो आप डिस्काउंट ब्रोकर के साथ खाता खोल ट्रेड कर सकते है जो आपसे एक निर्धारित शुल्क प्राप्त करता है।

वही अगर एक फुल सर्विस ब्रोकर की बात करें तो वह ट्रेडिंग एप के साथ-साथ एडवाइजरी और अन्य सर्विस भी प्रदान करता है और इसलिए प्रति लॉट के अनुसार शुल्क लेता है।

कुछ प्रसिद्ध ब्रोकर के ब्रोकरेज शुल्क की जानकारी नीचे टेबल में दी गई है:


निष्कर्ष

अब तक आपको पता लग गया होगा कि Call and Put Option in Hindi में खरीदने और बेचने का दृष्टिकोण क्या होता है। तो अगर आप स्टॉक या इंडेक्स को लेकर बुलिश है तो आप कॉल ऑप्शन खरीद सकते है या पुट ऑप्शन बेच सकते है।

दूसरी तरफ अगर आप मार्केट को लेकर बेयरिश है तो आप पुट ऑप्शन खरीद सकते है या कॉल ऑप्शन बेच सकते है।

ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट से मुनाफा कमाने के लिए जरुरी है कि मार्केट प्राइस से स्ट्राइक प्राइस का फासला ज्यादा हो और साथ ही एक नए ट्रेडर के लिए ज़रूरी है कि वह ऑप्शन ट्रेडिंग के नियमों (option trading rules hindi) का पालन करे जिससे वह मार्केट में सही तरह से ऑप्शन खरीद उसमे ट्रेड कर सके।

इसलिए ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट करने से पहले जरुरी है कि सही स्ट्राइक प्राइस का चुनाव हो।


अगर आप शेयर बाजार में ट्रेडिंग शुरु करना चाहते हैं तो अभी शुरुआत करने के लिए नीचे दिए फॉर्म भरें।

अभी डीमैट अकाउंट खोलने के लिए नीचे दिए फॉर्म में बुनयादी विवरण दर्ज करें।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

one + 12 =